अब ग्रंथकर्ता अपनी निष्कामता को बोधन करता. हुआ इस स्वाराज्य सिद्धि ग्रंथ के वाक्य समुदाय रूप पुष्पांजलि से अपने इष्टदेवता का पूजन करता है
अनुष्टुप छद ।
बाक्य पुष्पांजलिः सेयं भक्त्यान्यस्ता पदाब्ज
योः । । धियः प्रेरकयोरस्तु शिवयोः प्रीति
सिद्धये ॥४७॥
यह वाक्यरूप पुष्पांजलि, बुद्धि के प्रेरक उमामहेश्वर के चरणकमलों में मैं भक्तिपूर्वक अर्पण करता हूँ ज़ो मुझमें उनकी प्रीति को उत्पन्न कर ॥४७॥
बाक्यरूप पुष्पों की अंजलिरूप जो यह स्वाराज्य सिद्धि है ( सा इयं वाक्य पुष्पांजलिः ) सो यह वाक्य पुष्पांजलि (शिवयोः) पार्वती और शिव के (पदाब्जयोः) चरण कमलों म ( भक्त्या न्यस्ता ) मैंने भक्तिपूर्वक समर्पण की है । समर्पण की हुई यह वाक्य पुष्पांजलि ( धियः प्रेरकयो:) बुद्धि के प्रेरक उमा और महेश्वर में (प्रीतिसिद्धये प्रस्तु) प्रीति की उत्पन्न करने वाली हो ॥४७॥
इति श्रीमत् गंगाधरेन्द्र सरस्वती प्रणीत स्वाराज्य सिद्धौ श्रागमकरणाख्य तृतीय प्रकरणे सरलान्वय पद्य काशिकाऽऽख्या भाषा टीका समाप्ता ।