२६८ ] वारिधिसुधारसंलोलसानाम् । कैवल्य कल्पतरुमू लमुपाश्रितानां स्वाराज्यसिद्धिरियमस्तु जो शम दमादि दिव्य मणि भूषणों से युक्त हैं, जो वेदांत समुद्र के सुधारस के पान करने की खालसा वाले हैं और जो कैवल्य के कल्पवृक्ष के मूलरूप जो ब्रह्मनिष्ट गुरु हैं उनको प्राप्त हुए हैं, ऐसे बुद्धिवान अधिकारियों को यह स्वाराज्य सिाद्धि ग्रन्थ श्रानंददाता हो ॥४६॥ (शांत्यादिदिव्य मणिभूषण मंडितानाम् ) शम दम आदि रूप दिव्य मणिजड़ित भूषणों से जो भूषित हैं (वेदांत वारिधि सुधारसलालसानाम् ) और वेदान्तरूप समुद्र के अमृत सदृश परमानंदरूप आत्मा में जो अत्यंत स्पृहायुक्त हैं ( कैवल्य कल्प तरुमूल मुपाश्रितानाम्) जो मोक्षरूप कल्पवृक्ष का मूल ब्रह्म श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ रूप गुरु के चरणकमल का श्रवण के लिये जिन्होंने श्राश्रय लिया है (बुधानाम्) ऐसे उन पण्डितजनों को (इयं स्वाराज्य सिद्धिर्मुदे श्रस्तु) यह स्वाराज्य सिद्धि नामक अन्थ परमानन्द को देने वाला हो । भाव यह है कि लोक में भी स्वाराज्य सिद्धि नाम चक्रवर्तित्व रूप सार्वभौम राज्य महान् पुण्य वाले पुरुषों को ही प्राप्त होता है, जुद्र पुरुषों को नहीं । तैसे ही स्वात्मराज्य रूप स्वाराज्य पद् भी महान् पुण्यशाली, महा विरक्त हृदय, परम मुमुलु तथा जिन्होंने गुरुसेवादि पूर्वक वेदांत का श्रवणं किया है ऐसे पण्डितों को ही प्राप्त होता है, अन्य जनों को नहीं।॥४६॥
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