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पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/२३७

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प्रकरण ३ श्लो० १२ [ २२९ मालिनी छन्द् । निरवधि सुखभूमानंतसंवित्परात्मन्यनुभवमधि रूढे वाक्यतोयोगतोवावा । भवतु दृढ़ समाधिलक संग्राहको वा भजतु विषय जातं नेति भूयोपि महावाक्यसे अथवा योगसे जिसको प्रवाविरहित प्रखंड चैतन्य स्वरूप परमात्मा का साक्षात्कार प्राप्त हुआ है वह दृढ़ समाधि में रहे अथवा लोक संग्रह के माव से विषय सेवन करे, फिरसे उसे बंधन प्राप्त नहीं होता ॥१२॥ (महा वाक्यतः योगतोवा) महावाक्य के श्रवण विचारमात्र से अथवा योग अनुष्ठान पूर्वक (निरवधि सुख भूमानंत संवित् परात्मनि अनुभवं अधिरूढे) सीमा रहित परमानन्द अखंड चैतन्य सर्वोत्कृष्ट रूप परमात्मा के साक्षात्कार के अनुभव की टढ़ता प्राप्त होने पर फिर (भवतु दृढं समाधिः) उसको दृढ़ समाधि बनीरहे (वा लोक संग्राहकः विषय जातं भजतु) अथवा शिष्य पुत्र रूप लोकों के शिक्षा के अभिप्राय से उचित विषयों का वह सेवन करे (नैति भूयोपि बंधम्) वह विद्वान् फिर सर्वथा बंधन को प्राप्त नहीं होता ॥१२॥ अब उक्त आत्म साक्षात्कार की स्तुति करते हैं अपि भूपरमाणु भूरि संख्येष्वपयातेषु चतुर्मुखे ष्वलब्धात् ! अपदुःखनिरंत सौख्यसिंधोर्नच