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स्वाराज्य सिद्धि
बाधाध्यास विशेषावक्य विषयं नाम्नोश्चतुर्धा
मतं सामानाधिकरण्यमाद्यमिह न व्यथयमा
स्यात् श्रुतिः । ध्यानायश्रवणदनित्य फलता
दोषाश्च नाध्यासमधीस्तादात्म्यं न विरुद्वयोरिति
बलाद्वस्त्वेक्य पक्ष स्थितिः ॥३८।।
बाध, श्रध्यास. विशेषण और एकता विषय के चार
प्रकार के सामानाधिकरण कहे जाते हैं। यहां पहिला
नहीं है क्योंकि श्रुति का प्रयत्न व्यर्थ होगा । दूसरा नहीं
है क्योंकि अनित्य फल रूप दोषसे ध्यानादिक के श्रवण
से तथा तीसरे का विरोध होने से तादात्म्य नहीं है।
इस प्रकार तत्वमसि महा वाक्य में एक वस्तु पक्की ही बख
से सिाद्धि होती है ॥३८॥
(नाम्नों:) समान विभक्ति वाले शब्दों का (सामानाधि
करण्यम्) एक अर्थ प्रतिपादकत्व रूप अभेद् अन्वय (चतुर्विधं
मतम्) चार प्रकार का अभिमत है । वह चार प्रकार का अभेद
अन्वय यह ह ( बाधाध्यास विशेषणैक्यविषयम्) प्रथम बाधा
भेद् अन्वय है। मिथ्या ज्ञान का जो यथार्थ ज्ञान करने वाली
वृति है. उसका नाम बाध है। जैसे मंद अन्धकार में स्थाणु
के लिये यह पुरुष है इस प्रकार मिथ्या ज्ञान की वह पुरुष
स्थाणु ही है इस निश्चित यथार्थ ज्ञान से निवृत्ति होजाती है।
यह बाध विषयक सामानाधिकरण्य कहा जाता है अर्थात् बाध