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प्रतीकः |
श्लोकसंख्या
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नवाभ्रदिग्दन्त |
I 5
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निर्भीगो नु सनक: |
App. VIII 2
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निहत्य लिप्ता विकलाश्व |
,, iI 15
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नूत्नोऽत्र कृष्णः |
I.i.20
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पतितो दुष्टविनिघ्नात् |
,, IV. 8
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परहितमध्यानयनम् |
,, IV. 6
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पातानां शशितो |
1.9
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पातोनमन्दस्फुटदो |
4.1
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पातोनस्य विषोस्तु कोटि |
App. X. 2
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पातोनाधशशाङ्क |
App.X. 2
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पीनाङ्गहतात् |
" IV. 5
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पुनर्वनं घूर्जटि |
" I.i.10
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पूर्वोक्तकर्णेन सम |
3 .18
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पृथग् द्विनिघ्नात् |
App. I. ii. 11
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फले दूवक्षपदृग्गत्योः |
6.9
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ब्रह्याणं मिहिरं |
1.1
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भकेन्द्रखेटान्तरर्गतो |
5.4.7
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भक्त्या वृषारण्य |
1.3
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भवन्ति वारा हि |
App. I.ii.5
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भानुः सुनम्यो |
" V. 7c
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भुजाफलं मेष |
2.12
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भूपृष्ठगद्रष्टुरमी |
6.10
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भौमादीनां युक्पद |
1.13
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मध्ये कुर्याहो फल |
3.13
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मन्दस्फुटानां गति |
3.29
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मन्दस्फुटेभ्यः कुज |
4.3
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मन्दोच्चपातलव |
App. II. 12
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मन्दोच्चपाता अपि |
I.i. 18
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प्रतीकः |
श्लोकसंख्या
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मन्दोच्चपातानपि |
App.I.ii.4
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मन्दोच्चानां श्वभ्र |
1.8
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यज्ञावनी धीर |
App.II.4
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यद्यर्कोनितविस्तार |
" X. 8
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यानलिप्ताभिः |
3.8
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याताश्चैत्रादिमासा: |
2.6
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युक्त्वास्तार्कग |
App. X.7
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येषां मते भवति |
4.16
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रन्ध्राङ्गसायक |
2.1
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राशेराद्यस्याथ |
3.22
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राश्यादयो भास्कर |
2.11
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रोगादसाधुः |
App.I.i.8; V.6
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लघुसौख्यसागरघ्नात् |
" IV. 2
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लब्धं क्षिपेच्छोषित |
3.10
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लब्धस्य चापं स्वमद |
4.6
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लम्बाहतां काल |
6.2
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लम्बाहतां काल |
6.4
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लयतोषचत्वरघ्नात् |
App. IV.7
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लिप्तासुभेदे |
3.28
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विक्षेपकोटिरिह कोटि |
4.5
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विक्षेपवर्गान्वितकर्ण |
4.7
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विघेर्दिनं कल्प |
App. I.i.2
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विषुवहिनमध्य |
3.25
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व्यासार्धघ्नाद दो |
4.12
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व्योमास्बराकाश |
1.4
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शङ्कोः फलं मूविहगान्तराले |
6.8
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शरादिशैलाभ्र |
1.7
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शशाइपुत्रस्य दिनेश |
1.6
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शिष्टात् प्रियायैः |
App. V. 2
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