पृष्ठम्:सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः अन्ये च.djvu/१५८

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अथ गोपीचंद जी की सबदी

रज तजिलै पूता पाट तजिलें । तजिलै हस्ती घोड़ा।
सति सति भाषत माता मैणावती रे पूता । कलि में जीवन थोड़ा ॥ १ ॥
राजा कै घरि राणी होती माता । हमारें होती माई जी ।
सवषणं भी बातें बैठती माता । यहु यान कहां तैल्याईी ॥२॥
गुरु हमारें गोष वोलीणे । चरपट है गुरुभाई जी।
एक सबद हमॐ गुरु गोरक्षनाथ दीया । स वो ल्यण्या मैणांवती माई जी ॥ ३॥
मोलामैं राणमें बाग सैकन्या । बंगाल देस बड भोगीजी।
बारा बरस मोनै राज्यकरण दे। पिछे होऊंग जोगीजी ॥ ४॥
आजि आजि कर्ता पूता काहि काहि कर्ता ।
काया झरं कलाल की भाठी ।
सति मनि भाषेत माता मैणावती रे पूता । ।
यौ तन जलिमलि होइ मसांण की माटी ॥५॥
जोग न होमी रे पूता भोगन होसी । न सीझि सो जल विंच की काया ।
सति मति भांषत माता मैणावती रे पूता। भूमि मूल्यै रे भाया जी ॥ ६॥
मरोगे मरिजाहू गरं । फिर हो हृगे मासणकी छारंगजी ।
कबहूनू परम तत चीन्हें जेरे पूता। ज्यूं उतरौ संसार भौ पारंजी ॥ ७॥