पृष्ठम्:सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः अन्ये च.djvu/१५७

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न जान ऊँची झष धरम । ऊँचा मंदिर कूड़ी कर्म ।
चरपट कहै सुनौरे लोका । रतन पदारथ गमायौ फोका ॥ ५६॥
ऐकै पथर ऊपरे पाव । दुजा पार्थर ऊपर भाव ।
चरपट कहै उनीका मैव । यौ क्र्यु पाथर यौ क् देव ॥५७॥
पूजि पूजि भाठा सब जग घाठा । निजततर ह्या निनार ।
जोति सरूपी संगिही आछे । तिसका की विचार ॥ ५८ ॥
पूजिबा तौ आत्मदेव पूजिबा । चढाइवा तौ अनादि पाती ।
चरपट कहै कहूँ भटकि न मरना । घटि घटि तीरथ जाती ॥५९॥

॥ इति चरपटी की सबदी संपूर्ण ॥