पृष्ठम्:सिद्धसिद्धान्तपद्धतिः अन्ये च.djvu/१५९

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कूंण हमकू भात खुलावै । फ़ेण पषाले पाईजी।
कहां मं मेरै मैड़ी मंदिर । कहां तू मैणावती माईजी ॥ ८॥
अलप तुमी मात पुलावें । गंग पालै पाई जी ।
कृषे बिरषे तेरॉमेड़ी मंदिर । घरिघरि मैणावती माईजी ॥ ९ ॥
माता कै उपदेश तजीला । देस वंगाल जी।
गोपीचंद गुरु के सरपें । भेटत भागा काल जी ।। १० ।।
छाड्या राजपाट पाणी छाड्या । छायाभोग विलासजी ।
गोपीचंद धीलाघर सबदी । छाडि भया वनधामजी ॥ ११ ॥
राणी सकल कन्या सत्र ही । है है कार भईलाजी ।
रावृत गैति तुरी गज गलबल। राजा गोपीचंद कहां गईलाजी ।।१२।
जलंधरी याव हाथि दे डीबी । गोपीचंद पंदाया ।
मंदर महल पौलि जहां भीतरी । तहां अलेप जगाया जी ॥ १३ ॥
माइ बहन करि भिष्या मांगी । पूरया सींगी नांदी।
समलि साद मिली जब राणी । आइ किया संवादजी ॥ १४ ॥
मन राजा भन प्रजा । मन सकलका बँधी ।
मनई चीन्हे पारणमी भया । राजा गोपीचंदजी ॥ १५॥
ग्रह कै नांही देषिवे ई लषि । चंदर विवरजित पषि ।
जलमै बिब द्रपन में छाया । जैसा अचिंत पद गोपीचंद पाया ।। १६ ।।
पाया लो भल पायालो। सरपंथा न सहेती थिति ।
रूप सहेती दीसण लागा । पिंड भई प्रतिति ॥ १७॥
मन थिरंता पवन थिर । पवन थिरंता बिंद ।
बिंद थिरंता जिंदा थिर । “ भावं गोपीचंद ॥१८॥
मन चलंता पवन चलें । पवन चलता बिंद।
बिंद चलंता कंध पर्छ । यै भायै गोपीचंद ॥१९॥