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पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/६५९

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( ६५२ ) मा B कठोर दगढ या तज्ञा। दारु ( न० ) देवदारु वृक्ष । – देवः, ( पु० ) शिवजी 1 – देवी, ( खो० ) पार्वती जी द्रुमः ( पु० ) अश्वस्थ वद | धन, वि० ) १ बड़ा धनवान । २ वश खर्चीला बहुमूल्य - धनं, (न० j १ सोना | २ गन्य द्वथ्य विशेष | ३ मूल्यवान पोशाक। - धनुस (पु० ) शिवडी-धातुः ( पु० ) १ सुवर्ण । २ शिवजी | ३ मेरुपर्वत । - नदः ( पु० ) शिवजी 1- नदी ( बी० ) १ गंगा, यमुना, कृष्णा आदि बड़ी नदियाँ | २ एक नदी का नाम जो बंगाल की खाड़ी में गिरती है। -नन्दा, (खी० ) १ शराब | मदिरा | २ एक नदी का नाम । - नरकः, ( पु० ) २१ बड़े नरकों में से एक नलः, ( पु० ) एक प्रकार का नरकुल या सरपत ।-नवमी, (खो०) आश्विन शुक्ला १ मी : --नाटक, ( न० ) नाटक के लक्षणों से युक्त दस बैंकों वाला नाटक । यथा हनुमन्नाटक | - नादः, ( पु० ) १ कोलाहल । २ बड़ा ढोल या नगाड़ा| ३ बादल की गरज ४ शङ्ख । ५ हाथी । ६ सिंह ७ कान ८ ऊँट ८ शिव जी। -नार्द, ( न० ) वाद्यमंत्र या बाजा विशेष | - नासः, (पु० ) शिवजी । - निद्रा, ( स्त्री० ) मृत्यु | मौत । -नियमः, ( पु० ) विष्णु जो । —निर्वाणं, ( न० ) परिनिर्वाण जिसके अधिकारी केवल अर्हत था दुद्धगण हैं। -निशा, ( स्त्री० ) रात का मध्यभाग। आधी- रात २ कल्पान्त या प्रलय की रात ३ रात का दूसरा और तीसरा प्रहर | "महानिया तु विडेया अध्यक्षं महरवयस्।" -नीचः, ( पु० ) धोबी 1 - नीलः, ( पु० ) एक प्रकार का नीलम नामक रत्न जो सिंहलद्वीप में होता है। -नृत्यः, ( पु० ) शिव जी :-- नेमिः, ( पु० ) काक कौश्रा - पक्षः, ( पु० ) १ गरुड़ जी । २ एक प्रकार की बत्तख ।-पक्षी, ( स्त्री० ) उल्लू । पेचक | पञ्चमूलं, ( न० ) बेल, अरनी, सोनापाद, काश्मरी और पाटला इन पाँचों वृक्षों का समूह | - पञ्चविपं. (न० ) शृङ्गी, कालकूट, मुस्तक, बड़नाग और शङ्खकर्णी। महा 1 ३ -पथः, (पु०) १ बहुत लंबा और चौड़ा रास्ता | राजपथ | २ परलोक का मार्ग । मृत्यु । सौत। ३ कई एक ऊँचे पर्वत शिखरों के नाम जिन पर लोग चढ़ कर कूदते थे, जिससे वे सीधे स्वर्ग में चले जॉय ४ शिवजी - पद्मः, (पु० ) १ सौ पद्म की संख्या २ नारद जी का नामान्तर कबेर की नौ विधियों में से एक निधि पद्म, ( न० ) १ सफेद कमल । २ एक नगर का नाम । - पद्मपतिः, ( पु० ) नारद जी । -पातकं, ( न० ) बड़ा पाप । ब्रह्महत्या, सद्यपान, चोरी, गुरु की पत्नी के साथ सम्भोग तथा इनमें से कोई महापातक करने वाले का सैंसर्ग-ये महापातक कहलाते हैं। कहा जाता है कि, जो ये सहापातक करते हैं वे नरकयातना भोगने के अनन्तर भी सात अन्म तक घोर कष्ट भोगते हैं। - पात्रः, ( पु० ) महामंत्री । --पादः, ( पु० ) शिव जी का नाम / – पुरुषः, ( पु० ) १ बड़ा आदमी। प्रसिद्ध पुरुष | २ परमात्मा ३ विष्णु भगवान का नामान्तर ।-पुष्पः. ( पु० ) कीट विशेष | -पृष्ठः, ( पु० ) ऊँट /– अपश्चः, ( पु० ) विश्व । दुनिया । -प्रभः, ( पु० ) दीपक का प्रकाश । —प्रभुः, ( पु० ) १ बड़ा स्वामी । २ राजा मुखिया। प्रधान ४ इन्द्र | ५ शिवजी | ६ विष्णु भगवान - प्रलयः, ( पु० ) कल्पान्त समूची सृष्टि का सर्वनाश पुराणानुसार कल्प या ब्रह्मा के दिन के अन्त में सम्पूर्ण सृष्टि का नाश | उस समय अनन्त जलराशि को छोड़ और कुछ भी शेष नहीं रहता - प्रसादः, ( पु० ) , बड़ा अनुग्रह | २ भगवम्मूर्ति को निवेदित वस्तु विशेष प्रस्थानं, ( न० ) १ प्राण त्यागने को इच्छा से हिमालय की ओर जाना | २ मरण | देहान्त ।- प्राणः, (पु० ) व्याकरण के अनुसार वह वर्ण जिसफे उच्चारण करने में प्राणवायु का विशेष प्रयोग करना पड़ता है। वर्णमाला में प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण महाप्राण है | यथा- कवर्गं का ख, और घ । वर्ग का चौर क व