भारद्वाज "भारती संस्कृतप्रायो - साहित्यदर्पण | ४ लवा। बर। भारद्वाजः ( पु० ) १ द्रोणाचार्य का नाम | २: अगस्त्य का नामान्तर ३ मङ्गप्रह। ४ लाख | अगिन। चंदूल 1 भारद्वाजं (ज० ) हड्डी अस्थि । भारतः ( पु० ) कमान की ढोरी। धनुप का रोदा। भारविः ( पु० ) किरातार्जुनीय के रचयिता एक प्रसिद्ध एवं सफल संस्कृत भाषा के कवि । भारिः ( पु० ) शेर सिंह | ! भारिक }(वि० ) भारी । ( पु० ) कुली । हम्माल १ भार्गः ( पु० ) भर्गों का राजा । भार्गवः (पु० ) : शुक्राचार्य असुराचार्य २ परशु- राम ३ शिव ४ धनुर्धर १ हाथी । - प्रियः, ( पु० ) हीरा । - भार्गवी (स्त्री० ) १ तूव । घास | २ लक्ष्मी | भार्यः (5० ) नौका) भार्या (स्त्री० ) पत्नी मादा जानवर भाट ( वि० ) पत्नी के वेश्यापन से आजीविका निर्वाह करने वाला-ऊड, (वि० ) विवाहित - जितः, ( पु० ) स्त्री का वरावर्ती पति | भार्यासः ( पु० ) १ मृग विशेष । २ उस पुत्र का पिता जो की स्त्री से उत्पन्न हुआ हो। · + भालं (न० ) १ माया | २ प्रकाश ३ अंधकार । अङ्क ( पु० ) १ भाम्यवान पुरुष | २ शिव | ३ धारा ४ कबुधा चन्द्रः (पु०) १ शिव। २ गणेश दर्शनं. (न० ) इंगुर | सेंदूर-दर्शिन. ( वि० ) माथा देखने वाला वह गौer जो सदा मालिफ की ओर ध्यान रखता हो-दृश, (पु.)-लोचनः, ( पु० ) शिव पट्टः ( पु० ) पट्टे (न०) साधा | मातुः ( पु० ) सूर्य । भालुकः भाजूकः भाव ( पु० ) रीघ्र | भालू | बाल्कः भारप्रूकः 1 1 भावः ( ० ) १ अस्तित्व | विद्यमानत्रा | २ घटना ! होना अवस्था दशा हाजन | ४ नंग | रीति । ५ पद ओहदा ६ वास्तविकता | स्वभाव मिळझुकाव विचार विन वृत्ति प्रेम प्यार अनुराग १० अभिप्राय | ११ अर्थ | १२ सङ्कल्प हद विचार १२ हृदय आत्मा मन १४ पदार्थ वस्तु | जीव १५ जीवधारी १६ भावना | १७ डायभाव । आचरण १८ प्रेमोद्योतक हावभाव । १६ उत्पत्ति २० संसार | दुनिया २२ सय २३ लौकिक शक्ति 1 1- २१ गर्भाशय । २४ परामशे आदेश | २५ नाटक में किसी के लिये सम्बो धन | २६ व्याकरण में "भावक: " : २७ मान- मन्दिर ज्योतिष २८ अनुग, (वि० ) स्वाभाविक /- अनुगा, ( स्त्री० ) अन्तरं ( म० ) भित्र दशा |---- आफूतं, (न० ) मानसिक विचार प्रात्मक, ( वि० ) स्वाभाविक असली आलोना, ( स्त्री० ) प्रतिच्छाया । गम्भीरं, (न० ) 9 हृदय से २ गम्भीरता पूर्वक गम्यं, (न०) मन द्वारा जानने योग्य माहिन्. (वि० ) तारपर्व समझने वाला 1-जः ( पु० ) कामदेव -इ-वि, (वि० ) हृदय की बात जानने वाला 1-बंधन, ( वि० ) हृदय को बाँधने वाला हृदयों को मिलाने याला । ~ मिश्रा, ( पु० ) मान्य पुरुष : रूप. (वि०) असवी वातविक-वाचकं, (न० ) व्याकरण में यह संज्ञा जिसके द्वारा किसी पदार्थ का भाव, धर्म या गुवा मालूम पड़े। -शवलन्वं, (न० ) अनेक प्रकार के भावों का संमिश्रण 1- शून्य, (वि०) प्रेमरहित ।-समाहित (वि०) धर्मनिष्ट | साधु भक्तिपूर्ण सर्गः (पु० ) (सांय ) तन्मात्राओं की उत्पत्ति । ( वि० ) अनु- रक्त-स्निग्ध, (वि० ) चकपर भाव से अनुरक्त ।
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