सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/५८४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

प्रष्ट ( व० कृ० ) जला हुआ। जला कर राख किया हुआ। प्रध्वः ( पु० ) १ वर्षा ऋतु । २ सूर्य ३ जलविन्दु । प्रेक्षकः ( पु० ) दर्शक | तमाशबीन । प्रेक्षणं ( न० ) १ देखने की क्रिया । २ दृश्य । चित- वन । शक्क । सूरत । ३ आँख । नेत्र | ४ कोई भी सार्वजनिक दृश्य या तमाशा 1-कूटं (न० ) आँख का ढेला । प्रेक्षणकं (न० ) दृश्य | तमासा | स्वाँग | लीला । कौतुक । प्रेक्षणिका ( स्त्री० ) वह स्त्री जिसे समाशा देखने का बड़ा शौक हो । प्रेक्षणीय (वि० ) १ देखने के योग्य ध्यान देने के योग्य | दर्शनीय । २ प्रेक्षणीयकं ( न० ) तमाशा । दृश्य । प्रेक्षा (स्त्री० ) १ देखना । २ दृष्टि | निगाह । ३ स्वाँग तमाशा देखना। ४ सार्वजनिक कोई भी स्वाँग या तमाशा । २ विशेष कर नाटकीय अभि नय | नाटक | ६ बुद्धि | समझदारी | ७ विचार । आलोचन मनन । म वृक्ष को शाखा या डाली। - गारः, ( पु० ) - भागरः, ( पु० ) - गारं, आगारं, (न० ) –गृहं, (न० ) -स्थानं ( न० ) रंगशाला वह घर या भवन | जहाँ नाटक खेला जाय।–समाजः, (पु०) दर्शक नृन्दु । प्रेतावत् (वि० ) समझदार बुद्धिमान | विज्ञान प्रेक्षित (च० कृ० ) देखा हुआ ताका हुआ घूरा हुआ। मेक्षितं ( न० ) चितवन । नज़र | खः : ( पु० ) ) १ झूलना | २ पेंग लेना । ३ प्रे प्रेम (न० ) एक प्रकार का सामगान। प्रेखण ३ (वि० ) १ भ्रमणकारी । इतस्ततः फिरने } प्रेडूण | वाला । प्रेखणं ) ( न०) : अच्छी तरह भूलना । २ सुलना । मेडणम् हिंडोंला ३ अठारह प्रकार के रूपकों में से एक । इसमें सूत्रधार, विष्कुम्भक, प्रवेशक आदि की आवश्यकता नहीं होती। इसका नायक कोई नीच जाति का हुआ करता है। इसमें नाम्दी और प्ररोचना नैपथ्य में होते हैं और इसमें एक ही । प्रेत होता है। इसमें प्रधानता वीररस की रखी जाती है। खा। (स्त्रो० ) १ फूलना : हिंडोला । २ नृत्य | मेडा | ३ भ्रमण यात्रा | ४ विशेष प्रकार का घर या भवन । ५ घोड़े की दाल विशेष । प्रैखित | हिलता हुआ । झूलता हुआ । प्रेरित ) खोल ) ( धा० उभय ) [ खोलयति फ्रेंखो- प्रङ्खोलो जयते ] हिलना । इलना । हिलाना डुलाना । प्रैखोलनम् ) ( न० ) भूलना । हिलना । काँपना । प्रङ्खोलनम् २ हिंडोला । फूला प्रेत ( च० कृ० ) मृत मरा हुआ। प्रेतः ( पु० ) १ वह मृतात्मा की अवस्था जो श्रदेहिक कृत्य किये जाने के पूर्व रहती है। २ भूत । अधिपः, ( पु० ) यमराज 1 - अनं, ( न० ) वह चन्न जो पितरों को अर्पित किया गया हो । अस्थि, (न० ) मुर्दे की हड्डियाँ | -ईशः, ईश्वरः, (पु० ) यमराज | धर्मराज : -उद्देशः, (पु०) पितरों के लिये नैवेद्य - कर्मन, ( न० ) -कृत्यं, ( न० ) –कृत्या, ( स्त्री० ) दाह से लेकर सपिण्डी तक का वह कर्म जो मृतक जीव के उद्देश्य से किया जाता है। -गृहं, (न० ) कबरस्तान । --चारिन्, (पु० ) शिव जी। -दाहा, ( पु० ) मृतक के जलाने आदि का कर्म । - धूमः, ( पु० ) चिता से निकला हुआ धुआँ ।-पत्तः, ( पु० ) कार का अँधियारा या कृष्ण पाख पितृपक्ष कहलाता है। -पटहः, ( पु० ) वह ढोल जो किसी के जनाज़े या ठउरी को ले जाते समय बजाया जाता है। - पतिः, ( पु० ) यम का नामान्तर । धुरं, ( न० ) यमराज पुरी । -भावः, ( पु० ) मृत्यु | मौत । -भूमिः, (स्त्री० ) कवरस्तान 1-मेघः, ( पु० ) मृतक कर्म विशेष ।-राक्षसी, (स्त्री०) तुलसी-राजः, ( पु० ) यमराज । लोकः, ( पु० ) वह लोक जहाँ प्रेत निवास करते हैं।-- शरीरं, ( म० ) मृत शरीर । - शुद्धि, ( स्त्री० ) ~शौचं, ( न० ) किसी मरे हुए नातेदार के सं० श० को० -७३