पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३७०

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( ३६२ -- अतर (पु० ) १ आकार प्रणव २ २ घटक | स्त्री पुरुष की जोड़ी मिलाने वाला - अङ्कदम्-अङ्गदम् (न०) बहंगी कामर ! २ एक प्रकार का सुरमा या अञ्जन 1-अवलं, ( स० ) अअजि, (खी०) तीन अंजुडी - अधिष्ठानः, ( पु० ) जीवात्मा अन्यगा - मार्गणा-वर्तगा ( स्त्री० ) गङ्गा जी की उपाधियाँ -अस्यकः, ( go ) तीन नेत्रों वाला अर्थात् शिव जी - स्त्री० ) पार्वती अं जी। --प्रध्द (वि० ) तीन साल का ( २० ) तीन वर्षों का समूह /-प्रशीत, (वि०) अन् (वि० ) चौबीस 1-अन. (वि०) तिकोना । - छाथ - स्त्र, अखं, (न.) त्रिकोण (प्रहः (पु० ) तीन दिवस का काल । -आहितः, ( पु० ) तीन दिन में पूरा हुआ या तीन दिन में उत्पन्न हुआ। तिजारी। -चं ( 50 ) ( तूचं भी ) ( न० ) तीन ऋचाओं की समष्टि ककुद् ( पु० ) १ त्रिकूटाचल का नाम । २ विष्णु या कृष्ण - कर्मन, (पु० ) आहाण के तीन मुख्य कर्तव्य । अर्थात् यज्ञ करना, वेदों का पढ़ना और दान देना । ( पु० ) इन तीन कमों को करने वाला ब्राह्मण -कायः, ( पु० ) बुद्ध का नाम । - कालं, ( न० ) तीनों काल अर्थात् भूत, भविष्यद् और वर्तमान या प्रातः, मध्यान्ह और सायं। कृटः, ( पु० ) एक पर्वत का नाम जो लंका में है और जिसकी चोटी पर लंका नगरी बसी हुई थी :-- कूकं, ( म० ) त्रिफला चाकू -कोण, ( वि० ) तिकोना 1-: ( पु० ) त्रिकोण | १२ योनि । अग । -गणः, ( पु० ) धर्मं अर्थ और काम/गत, ( वि० ) १ तिहरा | २ तीन दिन में किया हुआ गर्ताः, ( बहु० ) १ देश विशेष, पंजाब का आधुनिक आलंधर नगर इस देश के शासक अथवा अधिवासी। -- गर्ता (स्त्री०) छिनाल औरत। -गुणा, (वि० ) १ डोरों वाला २ तिवारा कहा हुआ। तिवारा। तिगुना | ३ तीन गुणों वाला यर्थाद सत्व, रजस् और तमस् गुणों वाला --गुणा, ( श्री० ) १ ८३ -- त्रि माया | २ दुर्गा चक्षुसू (पु०) शिव | --चतुर, (चि० ) ( बहु० ) तीन या चार- चत्वारिंश ( दि०, ४३वाँचवारिंशत् ( स्त्री० ) ४३ --अगत् ( म० ) - जगती, ( ० ) १ त्रिलोक ज़मीद, भास्मान और पाताल । २ आकाश, स्वर्ण और भूलोक ~ अटः, ( युः ) शिव जी का नाम जटा, ( श्री० ) अशोक वाटिका में सीता जी के साथ रहने वाली राक्षसियों में से एक राक्षसी का नाम --णता, ( स्त्री० ) धनुष -- गाव गावन्. ( वि० बहु० ) तीन बार अर्थात् २७१-वक्षं, तक्षी, (पु० ) सीन बदइयों का समुदाय --- दण्डम् (३०) संन्यासियों का दण्ड विशेष | -- दण्डिन्. ( पु० ) १ तीन दुराड़ों को बाँध कर उसे दाहिने हाथ में धारण करने वाले श्री संन्यासी २ वह जिसने अपने मन, वाणी और शरीर को अपने वश में कर लिया है।। ) - याग्दण्डोऽय मनोदपडः कायदपस्तथैव च । बुद्धीपिडीति र उपते ॥ -- --मनुस्मृति | 1 1 - दशाः, ( बहु० ) १ तीस २ शेतीस देवता। दशः (पु० ) शिव 1-दोषं, (न० ) बात, पित धौर कफ-इन तीनों का प्रतिक्रम-धारा, ( स्त्री० ) गंगा-~णयनः, (वयनः ) -- तेत्रः, -लोचनः, (पु०) शिव जी-नवत, (वि०) १३वाँ | तिरानवेडाँ-पञ्च (दि०) पह पंचाश, (दि०) ५३ वाँ - पंचाशत् (स्त्री०) २३ /पटु, ( पु० ) फाँच शीशा पताकः, ( पु० ) तीन उंगली उठाये हुए फैला हुआ हाथ | २ माथे का ऊर्ध्वपुरद् | तिलक /- पत्रकं, ( म० ) पलाश | - पयं, ( न० ) १ तीन मार्गों का समूह | २ भूमि स्वर्ग, आकाश या आकाश, भूमि पाताल ३ तिराहा - पथना, ( स्त्री० ) गङ्गा - प. -- पदिका, ( श्री० ) तिपाई। पदी (स्त्री० ) हाथी का शेरवंद २ गायत्री छन्द | ३ तिपाई। गोधा- पभी नाम का पौधा--पः (पु० ) किंशुक धूप :-पाद, (वि० ) १ तीन पैरों वाला | 1