चजनो चलनी (स्त्री० ) १ स्त्रियों की कुर्सी । २ हाथी बाँधने का रस्सा | चलनकं ( न० ) नीच जाति की स्त्रियों के पहिनने की कुर्ती । ( ३२३ ) चलिः (पु० ) चादर । थोड़नी । चलित ( च० ० ) १ चला हुआ | हिला हुआ। श्रान्दोलित | २ गया हुआ 1 प्रस्थानित | ३ प्राप्त १ जाना हुआ। समझा हुआ । चलितं ( न० ) नृत्य विशेष | चलुः (पु० ) मुखभर जल चतुकः (पु० ) १ कुल्ला करने को हथेली में जल लेना। २ मुट्ठीभर या मुँह भर जल । चष् ( धा० उभय० ) [ चपत, चपते ] खाना । [ ( पर० ) चपति ] चपकः ( पु० ) ) मदिरा पीने का बरतन। ( न० ) चकम् ( न० ) ) ३ मदिरा | २ शहद । चषत्रिः (स्त्री०) १ भोजन | २ हत्या | २ निर्बलता। हास । गलाव | चषालः ( पु० ) १ यज्ञीयस्तम्भ के ऊपर लगाने को चाकचक्यं ( न० ) चमक दमक । चाक्र ( वि० ) १ गोल | २ पहिया सम्बन्धी | ३ चाकः ( पु० ) १ कुम्हार | २ तेजी । गाड़ीवान । चाकण: ( पु० ) कुम्हार या तेली का पुत्र । चाक्षुष ( वि० ) १ नेत्र सम्बन्धी । २ दृष्टिगोचर चाक्षुषः ( पु० ) छठवें मनु चातकः ( पु० ) एक पक्षी विशेष जो वर्षाजल में स्वांत की बूंद से बड़ा प्रसन्न होता है । पपीहा - श्रानन्दनः, ( पु० ) १ वर्षाऋतु । २ बादल । [ स्त्री० - चातकी ] | काठ का छल्ला । २ छत्ता । चह ( धा० परस्मै० ) [चहति, चहयति-चहयते] दुष्टता करना । २ छलना। धोखा देना । अभिमान | चातनं ( न० ) १ स्थानान्तरण | २ चोटिल करना। करना । चातुर ( वि० ) 3 चार संख्या सम्बन्धी । २ चतुर । योग्य | स्याना | ३ सुचारु भाषी । चापलुस । ४ दृश्य | दृष्टिगोचर | चातुरं (न० चार पहिये की गाड़ी। चातुरो (स्त्री० ) निपुणता । चतुराई चांगः चाङ्गः चांचल्यं चाश्चल्यम् ) ( पु० ) १ खट्टा शाक विशेष । २ दान्तों की } सफेदी या उनका सौन्दर्य | ( न० ) १ अस्थिरता | २ चंचलता । ३ विनश्वरता। चातुराश्रम्बम् उत्पन्न कर लेता है, जिसे वह धोखा देना चाहता है। चाटः ( पु० ) ठग बटमार 1 बदमाश । सेउड़ा । [ चाट: ऐसे ठग को कहते हैं जो आरम्भ में अपनी ओर से उस मनुष्य के मन में पूर्ण विश्वास "महार: विश्वास्य ये परथममपररम्हि " -- मिताक्षरा ] चा ( न० ) ) १ चापलूसी । खुशामद | ठकुर- चाटुः ( पु० ) ) सुहाती २ स्पटकथन । - उतिः ( स्त्री० ) चापलूसी की बात :ल्लोल, - कार ( वि० ) चापलूस | खुशामदी रह !-- पटु ( वि० ) चापलूसी करने में निपुण । -पटुः ( पु० ) मसखरा । भाँड़ । विदूषक चाणक्यः ( पु० ) विष्णु गुप्त या कौटिल्य भी चाणक्य का नाम था। इन्होंने नीति विषयक एक उत्कृष्ट ग्रन्थ की रचना की हैं। चार: ( पु० ) कंस का एक सेवक दैत्य, जिसे मल्ल- युद्ध में श्रीकृष्ण ने पछाड़ा था चाण्डाल ( पु० ) [ श्री०-चाण्डाली ] पतित जाति। देखो “चरडाल ।” चतुरता। पटुता । चातुरचं ( न० ) चौपड़ के या पाँसे के खेल में चार संख्या चिन्हित पाँसे का पढ़ना चार का दाव आना । चातुरक्षः ( पु० ) छोटा गोल तकिया । चौतुराश्रमिक ) ( वि० ) [ स्त्री० चातुरा- [ चातुराश्रमिन् । श्रमकी ] [ स्त्री० चातुरा- श्रमणी ] वह ब्राह्मण जो चार आश्रमों में से किसी एक आश्रम में हो। चातुराश्रम्यम् ( न० ) ब्राह्मण के जीवन की चार अवस्थाएं | स० श० कौ० ४०
पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३२०
दिखावट