कर्मदिन ( २१५ ) कलङ्क - (स्त्री०) कर्मकार सम्बन्धी वेदभाग पर विचार | कर्षिणी (स्त्री०) लगान | करने वाला जैमिनि द्वारा रचित अन्य विशेष - मूलं, (न०) कुश | 1: -युगम्. (न०) कलियुग। - योगः, (पु०) कर्ममार्ग 1-विपाक, देखो कर्मपाक /-शाला, (श्री०) दूकान । कारखाना। -शील-शूर, (वि०) परिश्रमी | क्रियाशील सङ्गः, (पु०) लौकिक कर्मों और उनके फलों में आसक्ति सचिवः, (पु० ) दीवान । मिनिस्टर ( बनीर --संन्यासिकः, संन्यासिन, (५०) संन्यासी जिसने समस्त लौकिक कर्मों का त्याग कर दिया हो। ऐसा तपस्वी जो धार्मिक अनुष्ठान तो परे, किन्तु उनके फलों की कामना न करे 1- साहिन्, (१०) १ प्रत्यक्षदर्शी साधी । २ वे साक्षी जो जीवधारियों के शुभाशुभ कर्मों को साड़ी बन कर देखते हों। [ऐसे नौ साक्षी माने गये हैं। य कर्पू: (स्त्री०) १ खाई। लंबी नाली । २ नदो | ३ नहर (50) अनेकंडों की भाग। २ खेती | २ आजीविका । कर्हि चित्, ( श्रव्यया० ) किसी समय कलू ( श्रा० श्राश्म ) [कलते कलित] बजाना। (उभय०) [कलयति, कलयते, कलित] ६ पकड़ना । थामना २ गिनना | ३ लेना । गिनना | २ रखना। ४ जानना समझना। कल (वि०) १ अस्पद मधुर धीमी और कोमल २२ निर्बल ३ कच्चा अनपचा हुआ अपक | ४ रुनभुन का शब्द करने वाला अंकुरा (g० ) सारसपी अनुनादिन ( पु० ) १ गौरैया पक्षी | २ मधुमक्षिका । २ चटक पक्षी - अविकलः, (पु०) गौरैया पक्षी । आलापः, (पु०. १ धीमी कोमल गुनगुनाहट | २ मधुर एवं प्रिय सम्भाषण । ३ मधुमक्षिका 1--उत्साल, (वि०) ऊंचा | वीषण | पैना :--कराठ, (वि०) मथुर कण्ठस्वर वाला।--- कराठ:. (पु०) कराठी, (स्त्री०) १ कोयल । २ हंस | ३ कबूतर |– कलः, (पु०) १ जन समुदाय का कोलाहल । २ अस्पष्ट और अंडबंड शोरगुल ३ शिव जी का नाम । --कूजिका कूणिका, (श्री०) निलंजा खी। असतीखी। - घोषः ( पु० ) कोयल - तूलिका, (स्त्री० ) निर्लज्जा या रसीजी की । -धौतं, (न०) : चाँदी २ सोना 1- धौत- लिपिः, (स्त्री०) सुनहले अचरों की लिखावट।- ध्वनिः, (स्त्री०) मधुर धीमा स्वर || २ क- सर ३ मोर मयूर ४ कोयल । -नाद:, (पु०) मधुर धीमा स्वर।भाषणं. (न०) चालकों की तोतली बोली |~-रवः, (पु०) मधुर धीमा स्वर । --- हंसः, (5०) १ हंस | राजहंस | २ बत्तक ३ १३ कर्मदिन (पु०) संन्यासी । साधु कमर: (पु.) लुहार । कर्मिन् (वि०) १ क्रियाशील कार्यंतस्पर २ वह पुरुष जो फल प्राप्ति की अभिलाषा से धर्मानुष्ठान करता हो। ( पु० ) कारीगर । कलाकुशल | कर्मिष्ठ (वि० ) चतुर । परिश्रमी व्यापारपद् कर्वट: (पु०) मण्डी अथवा किसी प्रान्त का ऐसा मुख्य नगर जिसके अन्तर्गत कम से कम २०० से ४०० तक आम हों। कर्षः (पु०) १ तनाव खिंचाव | २ धाकर्षण | ३ खेत की जुताई । ४ खाई। लंबी नाली १ खरोंच। कर्षः (पु०) कर्षम् (न०) १६ माशा की सोने चाँदी की सौल } परमात्मा । कर्षक (वि०) खींचने वाला। कलः (पु०) धीमा कोमल एवं अस्पष्ट स्वर। कलं (न०) वीर्य | धातु | कर्षणम् (न०) १ खींचना | तानना | २ जोतना । कलंकः ? (पु०) १ धब्बा | काला दाग । चन् हल चलाना | ३ चोटिल करना । पीड़न कलङ्कः ) (अलङ्का०) अपयश । बदनामी अपकीर्ति । ३ दोष त्रुटि ४ लोहे का मोचां सीता | सूर्यः सोमो : कालो महाभूतानि शुभकर्मको नव साक्षियः ॥] -सिद्धिः, (खी ) सफलता | मनोरथ का साफल्य - स्थानं, (न०) दफ्तर आफिस व्यापार करने का स्थान | 1-
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