पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/१४

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अनि परीक्षा या जाँच जैसी कि जानकी जी की लंका में हुई थी। पर्वतः (g०) ज्वालामुखी पहाद। -पुराणं ( न० ) १८ पुराणों में से एक। इसको सर्वप्रथम अग्निदेव ने वशिष्ठ जी को श्रवण कराया था; अतः वक्ता के नाम पर इसका नाम अग्नि- पुराग्य पदा-प्रतिष्ठा ( स्त्री० ) अग्नि को विधानपूर्वक वेदी पर या कुण्ड में स्थापना; विशेषकर विवाह के समय 1- श्वेशः ( पु० ) - प्रवेशनं ( न० ) किसी पत्रिता का अपने पति के साथ चिता में बैठ कर सती होना - प्रस्तरः ( पु० ) चकमक पत्थर, जिसको टकराने से श्राग उत्पन्न होती है। बाहुः (पु० ) धूम | ( धुआँ ) भं (ज०) १ कृत्तिका नक्षत्र का नाम । २ सुवर्ण 1-भु (न०) १ जल १२ सुवर्ण । -भूः ( पु० ) अग्नि से उत्पन्न | कार्त्तिकेय का नाम । ~~-मणिः (पु० ) सूर्यकान्तमणि | चकमक पत्थर ।--- मंथ: (मन्यः) ( 50 ) मंथन ( मन्थनम् ) (न०) रगढ़ से आग उत्पस करना। -मान्यं (न०) कब्ज़ि- यत । कुपच | धनपच । -मुखः (पु०) १ देवता । २ साधारणतया ब्राह्मण | ३ खटमल /- मुखी ( स्त्री० ) रसोईघर । -युग ज्योतिषशास्त्र के पाँच पाँच वर्ष के १२ युगों में से एक युग का नाम । --रक्षणं अग्नि को घर में बनाये रखना बुझने न देना। - रजः (पु.) - रचस् (पु०) १ इन्द्रगोप नामक कीड़ा। वीरवहूदी २ अग्नि को शक्ति | ३ सुवर्ण /-रोहिणी ( स्त्री० ) रोगविशेष । इसमें अग्नि के समान कलकते हुए फफोले पढ़ जाते हैं 1 - लिङ्ग (पु०) कीलकी रंगत और उसके मुकाव को देख शुभाशुभ बतलाने की विद्या विशेष लोकः जिसमें अग्निवास करते हैं। यह लोक मेरुपर्वत के शिखर के नीचे है |~~-लिङ्गः- वंशः ( पु० ) देखो “अग्निकुल" /--वधूः स्वाहा, जो दक्ष की पुत्री और अग्नि की रखी है।-वर्धक (वि०) जठराग्नि को बढ़ाने वाली (दवा :-वर्णः (पु०) इच्वाकुवंशी एक राजा का नाम। यह सुदर्शन का पुत्र और रघु का पौत्र था। --वल्लभः (पु० ) १ साखू का पेड़ १२ साल का गौंद | ३ राल । धूप | अय -विदु -वाहः (१०) १ धूम | पुष । २ बकरा |-- (पु०) अग्निहोत्री । - विद्या (स्त्री०) अग्निहोत्र | अग्नि की उपासना की विधि - विश्वरूप केतुतारों का एक भेद-वेशः आयुर्वेद के एक धाचार्य। -व्रतः (पु०) वेद की एक ऋचा का नाम /- वीर्य (न० ) अग्नि की शक्ति या पराक्रम (२) सुबई 1 - शरणं (न०) - शाला (खी०) ~शालं (न०) वह स्थान या गृह जहाँ पवित्र धग्नि रखी जाय। ~ शिखः (पु०) १ दीपक २ आशिबाण २ कुसुम वा बरें का फूख ४ केसर। --शिखं (न०) : केसर | २ सोना । -~-टुत दुम-ट्रोम ( पु० ) यज्ञविशेष । -संस्कार: (पु०) १ सपाना । २ जलाना । ३ शुद्धि के लिये अझिस्पर्शसंस्कार का विधान ३ मृतक के शव को भस्म करने के लिये चिता पर अनि रखने की क्रिया दाहकर्म ४ आद में पिण्डवेदी पर धाग को चिनगारी फिराने की रीति-सखः, सहायः (पु०) १ पवन । हवा २ जंगली कबूतर ३ धूम धुआ।-सादिक ( वि० ) या ( क्रि० वि० ) अनिदेवता के सामने संपादित । अझि को साक्षी करना।-- सात् ( क्रि० वि० ) भाग में जलाया हुआ। अस्म किया हुआ। सेवन श्राग तापना /- स्तुत् यशीय फर्म का वह भाग जो एक दिन अधिक होता है। स्तोमः (पु०) देखा "अनिष्टोमः" । ष्वान्तः (पु० दिव्य पितर निस्य पितर। पितरों का एक भेद। अशि, विद्युत् श्रादि विद्यज का जानने वाला --होत्रं न० ) एक यज्ञ | सायं प्रातः नियम से किये जाने वाला वैदिक कर्म विशेष । --होत्रिन् (वि० ) करनेवाला । ( पु० ) वह लोक ः (पु० ) ऋविक विशेष | इसका कार्य यज्ञ में अग्नि की रक्षा करना है। अभीषोमीयम् ( न० ) अग्निसोम नामक यज्ञ की हवि यज्ञ विशेष इस यज्ञ के देवता अग्नि और सोम माने गये हैं। अग्र ( वि० ) १ श्रागे का भाग | अगला हिस्सा | सिरा नोंक २ स्मृत्यानुसार भिक्षा का परिमाण, जो मोर के ४८ अंडों या सोलह माशे के बराबर होता है।३ प्रथम श्रेष्ठ २ प्रधान- अनी । सं० श० कौ०- २