पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/१३४

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आत्मना ग्राममातुः स्वसुः पुत्रा आरमपितुः स्वसुः सुद्राः विवेथा सामान्याः ॥ ( १२७ ) प्रदर आत्मनीनः ( पु० ) पुत्र २ साला ३ विदूषक प्रात्मनेपदं (न० ) १ संस्कृत व्याकरण में धातु में जगने वाले दो तरह के प्रत्ययों में से एक । २ आत्मनेपद प्रत्यय के लगने से बनी हुई क्रिया । अमरि ) १ जो के अपने को पाले २ ध्यात्मम्भरि J जो विना देवता पितर और अतिथि को निवेदन किये भोजन करे ३ उदरं- । भरि पेटू स्वार्थी आत्मवत् ( वि० ) १ लालची । हतारमा | संयत। धीरचेता। २ बुद्धिमान | [ संयम | बुद्धिमता | धात्मवत्ता ( स्त्री० ) धीरता | | आत्म- आत्मसात् (अन्यया० ) अपने अधिकार में अपने वश में। 1 अर्थात् मासी का पुत्र हुआ का पुत्र और मामा का पुत्र ] - बोध: आध्यात्मिकज्ञान ( पु० ) यात्मज्ञान | २ भूग, - योनिः, ( 30 ) १ ब्रह्मा का नाम । २ विष्णु का नाम । ३ शिव का नाम | ४ कामदेव २ पुत्र । -भूः, (स्त्री० ) १ पुत्री | २ प्रतिमा ३ बुद्धि (~ मात्रा, (खी०) परमात्मा का एक अंश-मानिन्, (वि० ) १ आत्मसम्मान रखने वाला २ अभिमानी - याजिन, (वि० ) जो अपने लिये या अपने को | बलि दे। ( पु० ) सब में अपने को देखने वाला। श्रात्मदर्शी विद्वान्। लामः, ( पु० ) जन्म | उत्पत्ति पैदायश |~ वञ्चक, ( वि० ) अपने आपको धोखा देने वाला - वधः, -वध्या, -हत्या, ( स्त्री० ) आत्मघात -शः, - ( पु० ) आत्मसंयम | श्रात्मशासन / -बिंदु, ( go ) बुद्धिमान पुरुष । ज्ञानी । -विद्या ( स्त्री० ) आध्यात्मिक विद्या :-वीरः (पु० ) १ पुत्र | २ पत्नी का भाई। साला । ३ (नाव्य- शात्र में ) विदूषक /-वृत्तिः, ( श्री० ) १ हृदय की परिस्थिति। ~~ शक्तिः, (स्त्री०) अपनी सामर्थ्य । -श्लाघा, स्तुतिः, ( स्त्री० ) अपनी बढ़ाई। शेखी। डींग।-संयमः, (पु० ) आत्मवशत्व -सम्भवः, - समुद्भवः ( ५० ) पुत्र । २ कामदेव | ३ ग्रह्मा विष्णु शिव की उपाधि | -सम्भवा, समुद्रा (स्त्री० ) १ पुत्री | २ सम्पन्न । 24 बुद्धि संयत तामा (वि० ) स्वस्थ | धीरचेता । २ द्धिमान । प्रतिभाशाली । - हननं, ( न० ) – हत्या ( स्त्री० ) यात्म- घात । खुदकुशी -हित, ( वि० ) अपना लाभ अपना फायदा | मना (अव्यया० ) स्वयमर्थक रूप से उसका प्रयोग होता है। यथा- जय वास्तमिता त्वचारममा । रामायण | त्मनीन (वि०) १ निज से सम्बन्ध रखने वाला । निज का अपना । २ आत्महितकर | प्रात्यंतिक ) आत्यन्तिक) ( दि० ) [ स्त्री०-~-आत्यंतिकी, आत्यन्तिकी] लगातार भवि " रत अनम्स । स्थायो। अविनाशी २ बहुत । अतिशय । सर्वाधिक ३ परम प्रधान । महान्। सम्पूर्ण बिल्कुल | ( आत्ययिक ( वि० ) [ श्री०- प्रात्ययिकी ] १ नाश कारी विपत्तिकारी । पीड़ाकारी । दुःखद् २ प्रमाङ्गलिक अशुभ ३ जरूरी अत्यन्त G आवश्यक | आय (वि० ) अत्रि के वंश का। अत्रिका | भत्रि से उत्पन्न । [ की पत्नी ३ रजस्यला स्त्री | (स्त्री०)अनि के वंश में उत्पन्न स्त्री । २ अग्नि आत्रेयिका ( स्त्री० ) रजस्वला श्री आथर्वण (वि० ) [ स्त्री०-पाथर्वणी ] अथ- वेद से निकला हुआ था अथर्ववेद का आथर्वणः (पु० ) १ अथर्वण वेद को जानने वाला। बास | २ अथर्वण बेद । ३ गृहचिकित्सक | युरोहित | [ ब्राह्मण आथर्वशिकः ( पु० ) अथर्वण वेद पड़ा हुआ आदंशः (पु०) १ दाँत । २ काटने की क्रिया काटने से पैदा हुआ धाव । ● आदरः ( पु० ) १ सम्मान | प्रतिष्ठा । मान । इज्जत | २ ध्यान | मनोयोग । मनोनिवेश । ३. उत्सुकता | अभिलाषा | ४ उद्योग प्रयत्न । २ भारम्भ। शुरूआत। ६ प्रेम अनुराग i