पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/६४

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( पचपन ) लिये मार्तण्ड के पिता प्रभञ्जन के पास जाता है तब वह पता चलता है कि कमकलिका तो प्रभञ्जन की पुत्री एवं मार्तण्ड की बहन है जो बचपन में खो गई थी। नायिका का पिता ब्रह्मपद उसका पालक पिता मात्र है। अब कमलकलिका के रूप कुमार के साथ विवाह करने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इस नाटक में प्राग्दीप्ति (फ्लैशबैक) का भी प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार अंक के स्थान पर दृश्य रखा गया है और संगीत का बाहुल्य है। देशभक्ति परक नाटकों की भी एक सामान्य पद्धति है कि कोई व्यक्ति प्राणपण से देशरक्षा के कार्य में जुट जाता है। तब कोई अन्तस्तल से प्रेम करने वाली युवती उसका पदानुसरण कर उसी युद्धस्थल के निकट घायलों और रोगियों की सेवा करने लगती है। उसका प्रिय घायल होकर उसी के उपचार कक्ष में आता है। इसी आशय का डा. रमा चौधरी का लिखा देशदीपम् नाटक नवीन पद्धति पर लिखा गया है । इसमें देशरक्षा हेतु प्राणोत्सर्ग करने वाले वीरों के कार्यकलाप दिखलाये गये हैं। चम्पक वदन एक ब्राह्मण पुत्र है वह अपने मित्र अभ्रप्रतिम के साथ देशरक्षा का व्रत लेता है। दोनों मित्र सेना में भरती हो जाते हैं। चम्पक वदन पदाति सेना में भरती होता है और अभ्रप्रतिम वायुसेना में सम्मिलित हो जाता है। चम्पकवदन की बहन पंकजनयना भी भ्रातृप्रेम से प्रभावित होकर युद्ध क्षेत्र में घायलों की सेवा शुश्रूषा का कार्यभार सह्याल लेती है। चम्पक वदन घायल होकर उसी के परिचारण में आता है जहां उसका मित्र और उसकी बहन उसकी सेवा शुश्रूषा करते हैं किन्तु उसे बचा नहीं पाते और वह देश रक्षा के नाम पर बलिदान हो जाता है। इस नाटक की रचना शैली भी नवीन है। अंकों के स्थान पर दृश्यों का प्रयोग तो किया ही गया है कार्यस्थली चयन इत्यादि भी नवीन शैली की ही है और गीतों का बाहुल्य उसे नवीनता प्रदान करता है। कतिपय स्फुट विषय इस काल के नाट्य साहित्य में कतिपय अन्य पुटकर विषयों का समावेश भी प्राप्त होता है। इस प्रकार के नाटकों में घनश्याम लिखित नवग्रहचरित एक महत्वपूर्ण रचना है। यद्यपि इसमें भी वर्तमान राजनैतिक संघर्ष की झलक पाई जाती है फिर भी पात्रों के सर्वथा वर्तमान से असंबद्ध होने के कारण इसे फुटकर नाटकों की श्रेणी में ही रखना ठीक होगा। इसमें आकाशचारी ग्रहों को पात्र के रूप में स्वीकार किया गया है। ग्रह नौ हैं और दिन सात ही; राहु और केतु के नाम पर कोई दिन नहीं हैं। इसी आधार पर लेखक ने संघर्ष की कल्पना कर ली है। ग्रहचक्र का स्वामी सूर्य नाटक का नायक है; मंगल उसका सेनापति है। राहु प्रतिनायक है जो केतु को लेकर संघर्ष के लिये तैयार हो जाता है। एक बुराई यह भी है कि राहु और केतु के पास कोई राशि नहीं है- १२