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पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/६५

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( छपन ) राशियों में ५ ग्रह मंगल, बुध, गुरूशुक्र और शनि) का दो दो राशियों पर अधिकार है और सूर्य तथा चन्द्रमा के पास एक एक राशि है। यह विद्रोह इसी अन्याय को लेकर उठाया गया है। राहु और केतु का पक्ष है कि उन्हें भी कम से कम एक राशि अवश्य मिलनी चाहिये और उनके नाम पर भी कोई एक दिन अवश्य होना चाहिये। उनका सुझाव है कि शनैश्चर राशिचक्र को पार करने में सबसे अधिक (६० वर्ष) लगता है; उसी को दो फाड़ कर उसके लिये एक दिन की और एक राशि की व्यवस्था की जा सकती। है। संघर्ष चलता है देवताओं के गुरु वृहस्पति और दैत्य गुरु शुक्र मिलकर समझौता कराते हैं कि राहु की उक्त मांगे तो मानना सम्भव नहीं है किन्तु उसे भी सूर्य के समकक्ष स्वर्भानु (स्वर्ग का सूर्य) की संज्ञा दी जा सकती है। राहु सन्तुष्ट हो जाता है और अपना आन्दोलन वापस ले लेत है। इसी प्रकार का एक अन्य नाटक है जीवन्यतीर्थ का लिखा शतवार्षिकम् इसमें आजकल की वैज्ञानिक खोजों को आधार बनाया गया है जिनमें चन्द्रमा इत्यादि प्रहों पर पहुंचने की चेष्टा की जाती है। मानव विज्ञान के अनुसन्धानों द्वारा विनाश की ओर बढ़ रहा है इसी तत्व को लेकर नाटक की रचना की गई है। मर्यमणि नायक है जो राकेटों को अपने शरीर पर चिपका कर ब्रह्मलोक में पहुंचता है। वहां द्वारपाल भयभीत हो जाता है। चन्द्रमा दुःखी है कि बुरी तरह उसका अतिक्रमण किया गया है । मर्यमणि चैलेज की मुद्रा में कहता है कि अभी तो मंगल तक ही राकेट छोड़ा गया है शुक्र और बुध तक भी राकेट झोड़ने की योजना बन चुकी है। इस पर राहु को क्रोध आ जाता है; सभी प्रह मर्यमणि को पकड़कर ब्रह्माजी के पास ले जाते हैं। ब्रह्माजी सबको शान्त कर कहते हैं कि मानव को या तो यान्त्रिकी पर अन्धाधुन्ध प्रयोग करने से विरत हो जाना चाहिये या १०० वर्ष में पृथ्वी का नाम निशान भी शेष नहीं रह जायेगा। रूस के महाक्रान्तिकारी साम्यवादी नेता महाराष्ट्र के महासन्त तुकाराम एवं चैतन्य महाप्रभु पर रमा चौधरी की रचनायें; शाहजहां बादशाह की राजनीति पर हजारी लाल शर्मा की रचना इसी श्रेणी में आती है। पञ्चानन ने प्रताप के पुत्र अमर सिंह के विषय में अमरमंगलम् नामक एक नाटक लिखा था। राजसिंह राठौर पुत्री का विवाह मुगलबादशाह से करना चाहता है; अमर सिंह भी उसे चाहते हैं। रानी अमरसिंह के पक्ष में है। मानसिंह अनेक छल कपट से अमरसिंह को मार डालना या कलंकित करना चाहते हैं। फिर भी अन्त में अमर सिंह को सफलता मिलती है और राजकुमारी उन्हें प्राप्त हो जाती है। संस्कृत भाषा एक संस्करण सम्पन्न भाषा है जो लोकभाषा नहीं हो सकती । लोकभाषा का स्वभाव परिवर्तनशीलता है जो प्रवाहित होती हुई परिवर्तनों को ग्रहण करती चलती है। बोलचाल और उच्चारण में पिता और पुत्र की भाषा में कुछ अन्तर अवश्य होता है। यह अन्तर पीढियों में बदलते बदलते दो चार सौ वर्ष में भाषा इतना नया रूप धारण कर लेती है कि दूसरी भाषा जैसी प्रतीत होने लगती है। यह परिवर्तनशीलता साहित्य