(चौवन ) , , ने इस समस्या को लेकर 'लक्षणव्यायोग' नामक एक नाट्यकृति की रचना। की। इसमें नक्सलवादी आन्दोलन की पृष्ठभूमि में तत्कालीन राजनैतिक स्थिति की चर्चा की गई है। इस आन्दोलन के कुछ चिन्ह अब भी आन्ध्रप्रदेश में दृष्टिगत होते हैं (ओ) स्वतन्त्रता के विकास के साथ मांगें मनवाने की नई विधियां प्रवर्तित की गई। जिनमें वेष्टन (घेराव) भी एक है। इसको लेकर वीरेन्द्र कुमार ने वेष्टन व्यायोग नामक एक एकाङ्ी की रचना की। संजय नायक है जिसके नेतृत्व में श्रमजीवी मांगपत्र लेकर श्रमाध्यक्ष और शिल्पाध्यक्ष के पास जाते हैं। मांगे न मानने पर श्रमजीवी अधिकारियों का घेराव कर देते हैं। विवश होकर अधिकारियों को उनकी मांगे माननी पड़ती हैं। तब कलियुग प्रकट होकर श्रमजीवियों को बधाई देता है। लेखक ने कर्तव्य की घोर अवहेलना, स्वतन्त्रता के भयानक दुरुपयोग और अनुशासन हीनता की प्रवृत्ति पर आक्षेप किया है (औ) इस काल में हड़ताल की प्रवृत्ति भी कर्तव्य हीनता अनुशासन हीनता और स्वतन्त्रता के दुरुपयोग का एक अच्छा निदर्शन है। इस विषय में वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य ने ‘शार्दूलशकटम्' नामक नाटक की रचना की। परिवहन संस्था के कर्मचारी मांगों को लेकर हड़ताल करते हैं। समझौता हो जाता है। कुछ दिनों बाद गवर्नर और मैजिस्ट्रेट आकर परिवहन निगम के कर्मचारियों को संबोधित करने वाले हैं। इस समय का लाभ उठाकर कर्मचारी पुनः हड़ताल का ऐलान करते हैं। एक मजदूर मारा भी जाता है विवश होकर अधिकारियों को पुनः समझौता करना पड़ता है। नवीन पद्धति की नाट्यकृतियां आधुनिक संस्कृत नाट्यरचना में कथानक की नवीन पद्धति के भी दर्शन होते हैं। फिल्म जगत् की कई रचनाओं में यह पद्धति अपनाई जाती है कि नायिका का किसी युवक से प्रेम हो जाता है और दोनों प्रेम से प्रभावित होकर विवाह करना चाहते हैं। नायिका को प्राप्त करने के लिये कोई अन्य व्यक्ति भी आतुर है। वह नायिका के प्रेमी के मार्ग में अनेक प्रकार की कठिनाइयां उपस्थित करता है। संघर्ष छिड़ जाता है जो कुछ समय तक चलता रहता है। अन्त में सिद्ध होता है कि नायिका तो उस दूसरे व्यक्ति की बहन है जो बचपन में गुम हो गई थी। तब उसके वास्तविक प्रेमी से विवाह के मार्ग में कोई बाधा नहीं रहती और नायिका अपने वास्तविक प्रेमी को प्राप्त कर लेती है। डा. रमा चौधरी की कृति पल्लीकमल भी इसी प्रकार की रचना है। इसमें प्रविधि में भी नई शैली अपनाई गई है। नायिका कमलकलिका रुपकुमार पर आसक्त है। परन्तु नायिका का पिता उसका विवाह मार्तण्ड से करना चाहता है। जब मार्तण्ड को पता चलता है कि नायिका रुप कुमार से मिलती जुलती है तब वह रूप कुमार को परेशान करना प्रारम्भ कर देता है। वह नायिका के पिता पर भी दबाव डालने की नीति अपनाता है और उस पर भूमिकर न देने का मामला चला देता है। जब नायिका का पिता रत्नमाला बेचने के
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