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पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/५१

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( ब्यालीस ) पुर्जा के रूप में अल्प शिक्षितों को तैयार करना और ठच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों द्वारा आत्मीयता स्थापित करना। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारतीय लोग कहने सुनने के लिये हिन्दुस्तानी बेंगे, किन्तु हृदय से अंग्रेज होंगे।’ भारतीयों ने अंग्रेजी शिक्षा को इसलिये अपनाया कि इस शिक्षा के माध्यम से अंग्रेजों के रहस्य को जानकर एक दिन पार्लियामेण्टरी सिटम अपने यहां भी स्थापित कर सकेंगे। वस्तुत: दोनों उद्देश्य सही सिद्ध हुये। अंग्रेजी साम्राज्य सत्ता की स्थापना सर्वप्रथम में बंगाल हुई थी और बंगाल में ही नवचेतना का उदय हुआ। राजा राममोहन राय इस नवचेतना के सूत्रधार बने । उच्चकोटि के ज्ञान के अधिकारी होते हुये भी हिन्दू समाज पतन के गर्त में गिरा, पहले मुसल्मानों के और बाद में अंग्रेजों के आधिपत्य में आना क्या यही हिन्दूजाति की नियति है। समझ लिया गया कि यदि इस पतन की अवस्था से त्राण पाना है तो पहले समाज में आई हुई। बुराइयों को दूर करना पड़ेगा; समाज को उनके अतीत गौरव की याद दिलानी होगी और उन्हें शक्तिशाली बनाकर दस्युओं के हाथ से देश को मुक्त कराना होगा। बंगाल में यह उत्तरदायित्व ब्रह्मसमाज ने लिया और हिन्दी भाषी प्रदेश पंजाब और गुजरात में स्वामी दयानन्द ने समाज सुधार का भार अपने कन्यों पर लेकर आर्य समाज की स्थापना की। जाति को वैदिक ज्ञान का उपदेश दिया, उन्हें उनका गौरव समझाया। आर्य सन्तान को झकझोर कर उठाया, समाज में आई हुई बुराइयों को दूर करने की चेष्टा की और इतर धर्मों की अपेक्षा अपने वैदिक धर्म को अधिक वरिष्ठ सिद्ध किया। जो काम हिन्दी भाषी क्षेत्र में स्वामी दयानन्द ने किया वही बंगाल में स्वामी रामतीर्थ स्वामी विवेकानन्द और अरविन्द घोष ने किया। उन्होंने ब्रह्मवाद ने नाम पर सारी जाति को संगठित करने की चेष्टा की। हिन्दू जनता की अनुक्रिया बड़ी जबरदस्त थी। सारी जाति अकर्मण्यता की आत्मा पर जमी हुई परतों को झटक कर एक दम कर्म क्षेत्र में कूद पड़ी। समाज सुधार के अनुपद ही राजनैतिक आकाङ्क्षायें सामने आने लगीं। सर्वप्रथम सन् १८५७ का सशस्त्र विद्रोह हुआ जो असफल हो गया। फिर अनेक पक्षों की ओर से स्वराज्य का आन्दोलन चल निकला। कभी हिंसात्मककभी अहिंसात्मक, कभी वैधानिक कभी अवैधानिक, कभी प्रत्यक्ष, कभी भूमिगत कभी प्रकट और अप्रकट मिला जुला कभी राष्ट्रीय कभी अन्तर्राष्ट्रीय अनेक विध आन्दोलन चलता रहा। अंग्रेजों का दमन चक्र, कूटनीति और फूट नीति भी प्रचलित रही। अनेक संस्थायें धर्म के नाम पर अंग्रेजों का साथ भी देती रही। महात्मा गान्धी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आन्दोलन भारत मे चल रहा था; सुभाषचन्द्र बोस ने विदेशों में जाकर स्वतन्त्रता के लिये संघर्ष किया। अन्त में सभी के पुण्य प्रताप से भारत को अभीष्ट स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। स्वतन्त्र भारत को भी अनेक उलझी समस्याओं का सामना करना पड़ा, देश का विकास हुआ, जन-जीवन में स्वाभिमान की एक झलक दिखलाई दी। रहन सहन के स्तर में सुखद परिवर्तन के दर्शन हुये और निराशा तथा जल के