पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/५०

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( इतालीस ) शासक भी। प्रथम कोटि के शासक हिन्दुओं की श्रद्धा भी अर्जित कर सके और उनके शासनकाल में साहित्य और कला की अभिवृद्धि भी हुई। दूसरे प्रकार के शासकों ने विद्रोह को जन्म दिया। इस प्रकार उठते गिरते, मिलते लड़ते मुस्लिम और मुगल शासन सूर्य के अस्त होने का समय आ गया। यूरोप के कई देशों ने भारत में व्यापार बढाने की योजना के आधीन व्यापारिक कम्पनियों को भारत भेज दिया। यहां आकर विदेशियों ने अनुभव किया कि हिन्दू मिस्लिम वैमनस्य का सहारा लेकर भारत में शासन सत्ता स्थापित करने के अच्छे अवसर हैं। उधर छोटे छोटे राजघराने भी परस्पर संघर्ष निरत थे। इन सब संघर्षों का सहारा लेकर यूरोपीय कम्पनियों ने परस्पर होड़ लगाकर साम्राज्य स्थापित करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया। अंग्रेज जाति अधिक निपुण और छल कपट में अधिक प्रवीण थी। अत: सफलता उनके हाथ लगी। वे प्रत्येक दिशा में भारत के भाग्य विधाता बन गये। साम्राज्य शक्ति हाथ में आ जाने से उनके मुख्य लक्ष्य व्यापार और अर्थोपार्जन में भी पर्याप्त सहायता मिली। धीरे धीरे भारत की सम्पत्ति से विदेशों के कोश भरने लगे और भारतीय जनता दीन हीन जीवन विताने पर विवश हो गई । अब अंग्रेजों के सामने सब से बड़ी समस्या थी अपने छल कपट से प्राप्त राज्य को स्थायित्व प्रदान करना। इसके लिये अनेक उपाय किये गये- जमीन्दारी प्रथा कायम कर शासन स्तम्भ तैयार कर दिये गये; अंग्रेजी शिक्षा के द्वारा शिक्षित जनता से आत्मीयता स्थापित करने की चेष्टा की गई, कड़े कानून बनाकर भारत का रोजगार चौपट किया गया, आयात निर्यात के नियम अपने अनुकूल बनाकर आम जनता को भुखमरी के कगार पर पहुंचा दिया गया जिससे आम जनता में सर उठाने की शक्ति नहीं रही; अदालतों की व्यवस्था ऐसी बना दी गई कि जनता परस्पर लड़ती रहे और न्याय प्राप्त न कर सके। जन समाज के लिये यह विचित्र स्थिति थी। अभी तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि शासन के लिये कानून सात समुद्र पार बनाये जाएँ और इस देश में लागू किये जायें प्रशासकों की नियुक्ति विदेश में हो; अभी तक शासक और शासित घुलमिल कर रहते थे; शासक अपना कर्तव्य समझकर शासितों के कष्ट निवारण के लिये तत्पर रहते थे, उनके सुखदुःख को स्वयं देखते थे उनके आमोद प्रमोद में शामिल रहते थे। अब अंग्रेज जाति स्वयं को शासक समझती थी और भारतीयों से मिलना आत्मसम्मान के प्रतिकूल समझती थी। बादशाह तो दूर साधारण अंग्रेज भी आतंक स्थापित करने में गौरव का अनुभव करता था । हिन्दू जनता ने जैसे तैसे मुसल्मान शासकों से आत्मीयता स्थापित कर ली थी और 'कोड नृप होय ही का हानी’ के आदर्श पर चलने लगे थे। अब नई परिस्थिति ने उनकी भावनाओं को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजों ने नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत अंग्रेजी को माध्यम दो दृष्टिकोणों से बनाया था सरकारी मशीनरी के सञ्चालन के लिये