पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/५२

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( तीरतालीस ) बादल छुट गये। भारत की प्रायः प्रत्येक भाषा के साहित्य ने स्वतन्त्रता के आन्दोलन में अपना उचित सहयोग प्रदान किया। प्रत्येक प्रदेश में अनेक प्रकार की काव्यात्मक रचनायें हुई और गीत लिखे गये जिनसे वातावरण के निर्माण में पर्याप्त सहायता मिली । संस्कृत भाषा भी इस दिशा में पीछे नहीं रही और इस दिशा में अनेक नाटकों की भी रचना हुई। अंग्रेजी राज्य जहां गरीबी और विपन्नता का अभिशाप लेकर उपस्थित हुआ था वहां उसके कतिपय वरदान भी थे। छापा खाने के प्रचलन से प्रचार कार्य में सुविधा हो गई; अनेक पत्र पत्रिकायें प्रकाशित होने लगीं। लेखकों को परिशीलक जनता तक अपनी रचनायें पहुंचाने में परेशानी दूर हो गई और रचना के स्थायी संरक्षण की समस्या भी हल हो गई। दो संस्कृतियों और साहित्यों का सम्मिलन एक दूसरे को प्रभावित करता ही है। भारतीय साहित्य भी अंग्रेजी शैली से प्रभावित होने से बचा नहीं रहा और नाट्य रचना पद्धति भी प्रभावित हुई। संस्कृत नाटककार पुराने छेड़े की रचनायें तो करते ही थे प्रवर्तमान परिस्थिति से भी वेखहर नहीं थे और अंग्रेजी साहित्य के सम्पर्क ने प्रभाव डाला था उसको अपनाने के लिये भी तत्पर थे। समस्त रचनाओं पर ध्यान देने से वर्तमान राष्ट्रीय समस्याओं पर रचना करना ही इस साहित्य की सामान्य विशेषता थी। निम्न पंक्तियों में वर्गीकृत रूप में तत्कालीन कतिपय रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है (१) प्रविधि पर प्रभाव- अंग्रेजी साहित्य में नाटक खण्डों का विभाजन अंकों में नहीं दृश्यों में करने की परम्परा थी । छोटे नाटकों का दृश्यों में विभाजन युक्ति युक्त है। अत: प्राचीन परम्परा के साथ कई अर्वाचीन नाटककारों ने अपनी कृतियों का विभाजन दृश्यों में भी किया। इसके दोनों प्रकारों का उपयोग किया गया- नाटक का मूल रूप में दृश्यों में विभाजन या अंकों में विभाजन कर अंकों का दृश्यों में विभाजन। अंकों के नये नामकरण की भी परम्परा चल दी अंकों के स्थान पर लोक, उत्साहकुसुम कल्लोल इत्यादि नामों का भी प्रयोग किया जाने लगा। विश्वेश्वर विद्यभूषण ने चाणक्यविजयम् नाटक में अंकों के स्थान पर दृश्यों का प्रयोग किया है। अर्थोपक्षेपक का प्रयोग नहीं किया गया है। इसी प्रकार पद्मनाभाचार्य ने ध्रुवतापसम् में, घनश्याम ने नवग्रहचरित नामक सट्टक में प्रस्तावना के स्थान पर सूच्यार्थविष्कम्भ के स्थान पर काल और अंक के स्थान पर प्रपञ्च शब्द का प्रयोग किया है। रमा चौधरी ने पल्ली कमल में दृश्य शब्द का प्रयोग किया है; हरिदास सिद्धान्त वागीश ने मिबारप्रताप में और प्रभुदत्त शास्त्री ने संस्कृत वाग्विभवम् में अंकों का दृश्यों में विभाजन किया है। (२) अंग्रेजों की राज्यस्थापना में कूटनीति- मथुरा प्रसाद दीक्षित के नाटक ‘भारतविजयम्’ में अंग्रेजों की साम्राज्य स्थापित करने में कूटनीति का स्पष्ट चित्रण किया गया है। अंग्रेज भारत में आते हैं; राजनीति में दखल देने लगते हैं। नवाब सुराजुद्दौला