पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/४७

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( अड़तीस ) था। इन सब सम्पकों से भारतीय समाज पर यूनानी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था और इसी के साथ भारतीय नाट्यकला का उद्भव हुआ। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि भारतीय नाटकों में परदे के लिये यवनिका शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ होता है यवन देश से आया हुआ। वेवर का कहना है कि ‘यवनिक' के अतिरिक्त अन्य कोई समानता भारतीय और यूनानी नाटकों में नहीं है। किन्तु विंडिश एक कदम और आगे बढ़ गये। उन्होंने सिद्ध करने की चेष्टा की कि मृच्छकटिक में एटिक की सुखान्तिका का प्रभाव खोज निकाला जा सकता है। कतिपय विचारकों ने यह भी प्रतिपादित करने की चेष्टा की है कि नाट्य की विषयवस्तु भी मेलखाती है। दोनों में राजा एक युवती से प्रेम करता है; उसमें विष उपस्थित होते हैं फिर सुखान्त मिलन होता है। दोनों में मिलन के दृश्य दिखलाये जाते हैं; वियोग होता है वियोग वेदना का चित्रण होता है, निशानी भेजी जाती है; डाकुओं द्वारा नायिका का अपहरण किया जाता है, प्रवहण भंग होता है, नायिका कष्ट में पड़ती है, फिर उसका उद्धार हो जाता है। यह साम्य सिद्ध करता है कि भारतीय नाटक का विकास यूनानी नाटकों के अनुकरण के आधार पर हुआ है। साम्य के जो बिन्दु बतलाये जाते हैं वे इतने सामान्य हैं कि किसी भी नाट्यपद्धति में पाये जा सकते हैं। ठस समय राजतन्त्र तो यूनान और भारत दोनों देशों में था; राजकीय चरित्र ही नाट्य के विषय बनते थे। प्रेम, उसमें विन, विरह, वेदना, मिलन ये इतने सामान्य तत्व हैं कि इनका उपादान कहीं भी पाया जा सकता है। उसमें आदान प्रदान का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। स्वयं पाश्चात्य विद्वान इस विषय में एकमत नहीं हैं। मैकडानल का कहना है कि जितना साम्य यूनानी नाटकों के साथ भारतीय नाटकों का पाया जाता है उससे कहीं अधिक साम्य सेक्सपियर के नाटकों और भारतीय नाटकों में पाया जाता है। यह केवल कल्पना है कि भारत में सिकन्दर के आगमन के बाद यूनानी नाटकों का भारत में प्रचलन हो गया था। यहां के रंगमश्च पर यूनानी नाटक दिखलाये जाते थे पहले तो यही बात प्रमाणित नहीं है। रह गई यवनिका की बात- विद्वानों का कहना है कि परदों की प्रथा यूनानी नाटकों में थी ही नहीं। फिर उनके अनुकरण का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। यवनिका इस नामकरण का अन्य कारण भी हो सकता है। भारतीय नाटकों में यूनान की लड़कियों का सेविका के रूप में उल्लेख किया जाता है। यूनानी साहित्य में भी उस समय यूनानी लड़कियों को पेंट के रूपमें भारत को भेजने का उल्लेख प्राप्त होता है। हो सकता है परदों के उठाने गिराने पर यूनान की लड़कियां नियुक्त की जाती हों और इसलिये परदों का भी उन्हीं के नाम पर प्रचलन हो गया हो। साम्य की अपेक्षा यूनानी नाटकों के साथ भारतीय नाटकों का वैषम्य अधिक है। पहले तो उद्देश्य में भी भिन्नता है। यूनानी नाटकों का ठद्देश्य ही भारतीय नाटकों के ठद्देश्य से भिन्न हैं। यूनानी नाटकों में शोकान्तिका का महत्व हैं; उसमें यथार्थवाद पर जोर दिया जाता है। जीवन के घृणित सच्चे चित्र दिखलाकर दर्शकों और आम जनता |