पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/४६

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( सैंतीस ) लेखकों ने दामोदर मिश्र और मधुसूदन नामों द्वारा संकलन और उद्धारकर्ता के रूप में अपना नाम भी चलने दिया। ऊपर जो कुछ कहा गया है उसका आशय यह नहीं है कि साहित्य के अनुसन्धान की दिशा में जो कुछ निर्णय किये गये हैं वे सब अविश्वसनीय ही हैं। उसका आशय केवल यही है कि इस दिशा में किये गये अनुसन्धानों पर विवेक के साथ विश्वास करना चाहिये। इसमें कुछ आग्रह का अंश भी वाधक हो जाता है। सामान्य भारतीय व्यक्ति जिन घटनाओं को लाखों वर्ष पुराना मानता है उन्हें ही पाश्चात्य विचारक अधिक से अधिक परवर्ती सिद्ध करने की चेष्टा करता हैं। उनका एक आग्रह यह भी रहता है कि भारत में जो कुछ उत्तम और महत्वपूर्ण है वह सब यूरोप की देन है। आर्यों का आदिदेश भी इसी विवाद में उलझा हुआ है। इन सब बातों के होते हुये भी पाश्चात्य विचारकों ने हमारे साहित्य के विषय में जो अनुसन्धान किये हैं हमें निस्सन्देह उनका आभारी होना चाहिये। उन लोगों ने जो दिशा उन्मीलित की है वह हमारी पथ प्रदर्शक अवश्य है। इसमें सन्देह नहीं। भारतीय नाट्यकला पर यूनानी प्रभाव मैकडानल के अनुसार भारत का पाश्चात्य देशों से सम्पर्क ५वीं शताब्दी .पू. से ही चल रहा था जबकि आर्क मेनिड वंश का शासन था, किन्तु वास्तविक सम्पर्क सिकन्दर के आक्रमण के साथ चौथी शताब्दी .पू. मे स्थापित हुआ। श्रीवेवर और श्रीविडिश ने मत व्यक्त किया है कि सिकन्दर के साथ कलाकारों का एक दल भी आया था जो सिकन्दर के लौट जाने के बाद यहीं स्थिर हो गया। ई.. तीसरी शताब्दी में यूनानीशासक भारतीय जीवन में सम्मिलित होने लगे थे। सेल्यूकस ने मीडिया और पर्शिया में साम्राज्य स्थापित कर लिया था चन्द्रगुप्त की शक्ति को पराजित करने में स्वयं को असमर्थ पाकर सन्धि कर ली और पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया। इसके साथ ही यूनानी मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में चन्द्र गुप्त के दरबार में छोड़ दिया। मेगस्थनीज ने निकट से देश का अध्ययन कर ‘टा इण्डिया’ नामक पुस्तक की रचना की जो किसी विदेशी द्वारा भारत के विषय में लिखा गया पहला अभिलेख होने के कारण अधिक महत्वपूर्ण है। वेवर और विंडिश का मत है कि भारत के पश्चिम में यूनानी शासकों ने अपनी साम्राज्य सत्ता स्थापित कर ली थी। वे अपने अधीनस्थ राज्यों में यूनानी नाटकों का अभिनय करवाया करते थे। उनके अनुकरण पर संस्कृत साहित्यकारों ने भी नाटकों की रचना प्रारम्भ कर दी। सिकन्दर नाट्यकला का शौकीन था। उसके अभियान में नाट्यमण्डलियां भी साथ में आई थीं। अपने विजित प्रदेशों में वे नाटकीय प्रदर्शनों का आयोजन करते थे। उस प्राचीन काल में अलेक्जेंड्रिया से भारत का व्यापार भी होता १. भारत के साथ पाश्चात्य सम्पर्क के विषय में देखिये मैकडानल का संस्कृत साहित्य का इतिहास अध्याय१६