पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/४२

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( तेंतीस ) है। नायिका भी प्रसिद्ध होती है। गर्भ और वमश सन्धियां इसमें नहीं होती। पदार्थ के स्थान पर पद का अभिनय किया जाता है। अत: इसमें भारती वृत्ति की प्रधानता होतीहै। कीथ के अनुसार इसमें श्रीशब्द का प्रायः उल्लेख किया जाता है और धीरूप धारिणी कोई नटी बैठकर पद गाती है। साहित्यदर्पण में इसका उदाहरण दिया गया है। क्रीडारसातल और कीथ ने माधव रचित सुमद्राहरण को एकमात्र इस भेद की रचना कहा है । (८) विलासिका- इसका एकमात्र उल्लेख साहित्य दर्पण में ही है। इसमें शृङ्गार की अधिकता होती है; लास्य के दसों अंग विद्यमान रहते हैं। विदूषक, पीठमर्द और विट इसमें विशिष्ट पात्र होते हैं, नायक निम्नकोटि का होता है; वस्तु बहुत बड़ी होती है। किन्तु वेषभूषा और नेपथ्य तथा नाचगान की अधिकता होती है; गर्भ और विमर्श ये दो सन्धियां नहीं होतीं। कुछ लोग इसे लासिका की संज्ञा प्रदान करते हैं जिसका दुर्मल्लिका में अन्तर्भाव हो जाताहै। इसका कोई उदाहरण उपलब्ध नहीं होता। (९) हल्लीस- इसका वर्णन नाट्यदर्पण, काव्यानुशासन, भाव प्रकाशन इत्यादि प्रन्यों में भी पाया जाता है और अभिनवगुप्त ने भी इसका उल्लेख किया है। यह एक प्रकार का नृत्य है जिसमें ८, १० स्त्रियां मण्डल बनाकर तथा एक साथ नायक को मध्य में रखकर उसी प्रकार नाचती हैं जिस प्रकार व्रजभूमि में गोपी कृष्ण नृत्य की परिपाटी है। इसमें कैशिकी वृत्ति की प्रधानता होती है नायक की वाणी उदात्त होती है तथा ताल और लय का बाहुल्य होता है। मुख और निर्वहण दो सन्धियां होती हैं। इसका उदाहरण है (१०) भाणिका- इसका उल्लेख अनेक आचार्यों ने किया है । यह भाण का सजातीय उपरूपक है। इसमें नेपथ्य विधान अत्यन्त मनोरम होता है; मुख और निर्वहण ये दो सन्धियां होती हैं; कैशिकी और भारती ये दो वृत्तियां होती हैं। नायिका कोई उच्चकोटि की सी होती है और नायक हीन कोटि का पुरुष। इसके ७ अंग माने गये हैं जिनमें इसकी वस्तु का विश्लेषण हो जाता है। इसमें प्रसंगवश कार्य का वर्णन किया जाता है। (उपन्यास; निर्वेदपूर्ण कथन किये जाते हैं विन्यास; भ्रान्ति का नाश होता है विबोध; मिथ्या कथन किये जाते हैं (साध्वस); क्रोध और पीडा से उपालम्भ दिये जाते हैं (समर्पण) कोई दृष्टान्त दिया जाता है निवृत्ति; और अन्त में कार्य का समापन किया जाता है (संहार इन्हीं सात अंगों में भाणिका की योजना की जाती है। शारदातनय ने चार अन्य उपरूपकों का वर्णन किया है जो साहित्य दर्पण में उल्लिखित नहीं हैं- (१) पारिजात या पारिजातलता- उदाहरण गंगातरंगिका; (२) कल्पवल्ली उदाहरण माणिक्यवल्लिका; (३) डोम्बिका उदाहरण गुणमाला, चूडामणि; (४) भाण उदाहरण नन्दिमती शृङ्गारमंजरी ।