पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/४१

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( बत्तीस ) हास्य और शङ्गार का बाहुल्य होता है। इसकी नायिका कुलटा वेश्या होती है। इसमें आरभटी को छोड़कर तीन वृत्तियां होती हैं अर्थात् विषय वस्तु में कठोरता नहीं होती। इसमें भग्नताल, मात्रा और लास्य का बहुत प्रयोग होता है। विदूषक और विट का प्रयोग भी आवश्यक है। नायिका उच्च गुणों वाली दिखलाई जाती है। इसका उदाहरण है यादवोदय । (५) प्रेक्षण या प्रेङ्कण- इसमें सभी वृत्तियां होती हैं। कोई हीन पात्र इसके नायक के रूप में दिखलाया जाता है। न इसमें सूत्रधार होता हैं, न विष्कम्भक न प्रवेशक। गर्भ और विमर्श सन्धियां भी नहीं होतीं। इसमें युद्ध भी दिखलाया जाता है और क्रोध पूर्ण वार्तालाप भी। नेपथ्य में नान्दीपाठ किया जाता है और प्ररोचना का भी प्रयोग होता है अर्थात् कवि और काव्य की प्रशंसा भी आरम्भ में की जाती है। इसका उदाहरण है। वालिवध; इसका उल्लेख अभिनव गुप्त ने भी किया है और नाट्यदर्पण, भाव प्रकाशन, काव्यानुशासन में भी इसका निरूपण किया गया है। नाट्यदर्पण में लिखा है कि गलियों में, समूह में, चौराहों पर मद्यशालाओं में जो बहुत से पात्र मिलकर विशेष प्रकार के नृत्य के द्वारा किसी वस्तु का प्रदर्शन करते हैं वह प्रेङ्कण कहलाता है। भाव प्रकाशन में त्रिपुरमर्दन और नृसिंहविजय ये दो ठदाहरण दिये गये हैं। (६) रासक- इसका उल्लेख दशरुपक में भी किया गया है और अभिनवगुप्त ने भी इसे स्वीकार किया है। इसके अतिरिक्त नाट्यदर्पण, भावप्रकाशन और काव्यानुशासन में भी इसका निरूपण है। नाट्यदर्पण के अनुसार १६१२ और ८ नायिकायै पिण्डंबन्ध इत्यादि विन्यास से जिसमें नृत्य करती हैं उसे रासक कहा जाता है। साहित्यदर्पण में नृत्य के अतिरिक्त अभिनय भी सम्मिलित कर दिया गया है। इसके अनुसार रासक में ५ पात्र होते हैं और मुख तथा निर्वहण ये दो सन्धियां होती हैं। कुछ लोग प्रतिमुख सन्धि का होना भी स्वीकार करते हैं। भारती और कैशिकी ये दो वृत्तियां होती हैं। इसमें अनेक भाषाओं और उपभाषाओं तथा अनेक प्रकार की प्राकृतों का प्रयोग किया जाता है। सूत्रधार का अभाव होता है किन्तु नान्दीपाठ किया जाता है। वीथी के सभी अंग रहते हैं। विभिन्न कलाओं का प्रयोग किया जाता है। इसकी नायिका प्रख्यात होतीहै और नायक मूर्छ। उदाहरण मेनकाहितम् । (७) श्रीगदित- इनका उल्लेख दशरूपक के समय से ही प्रारम्भ हो जाता है, अभिनवगुप्त, रामचन्द्रगुणचन्द्र, शारदातनय प्रभृति अनेक आचार्यों ने इसे मान्यता दी है। नाट्यदर्पण के अनुसार जिसमें कोई कुलाङ्गना अपने पति के शौर्य, त्याग, औदार्य प्रभृति गुणों का गति के माध्यम से अपनी सखी के सामने उसी प्रकार वर्णन करती है मानो लक्ष्मी विष्णु का वर्णन कर रही हो; फिर पति के द्वारा वियुक्त होने पर गीत का स्वर क्रमशः उपालम्भ परक होता जाता है उस रूपक को श्रीगदित की संज्ञा प्राप्त होती है। साहित्यदर्पण के अनुसार इसकी वस्तु प्रख्यात होती है, नायक प्रख्यात और उदात्त होता