पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/४०

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( इक्तीस ) (९) गोष्ठी- इसमें कुल मिलाकर १५१६ पात्र होते हैं,९ या १० पुरुष पात्र और ५६ स्त्री पात्र में सभी पात्र जन साधारण से लिये जाते हैं और सामान्य जनजीवन का अभिनय प्रस्तुत करते हैं। इसके संवाद अधिकतर हल्के फुल्के होते हैं जिनमें उदात्तता नहीं होती। इसमें मुखप्रतिमुख और निर्वहण ये तीन सन्धियां ही होती हैं क्योंकि संघर्ष अधिक नहीं होता। इसमें प्रधानता कामश्ङ्गार की होतीहै और कैशिकी वृत्ति का विशेष आश्रय लिया जाता है। साहित्य दर्पण में इसका उदाहरण दिया गया है- रैवतमदनिका। (२) नाट्यरासक- इसका उल्लेख भावप्रकाशन, नाट्यदर्पण और साहित्यदर्पण में किया गया है । नाट्यदर्पण में इसकी परिभाषा अत्यन्त संक्षिप्त दी गई है- वसन्त आने पर स्त्रियां प्रेम के आवेश में भरकर जब राजाओं के चरित्र को नृत्य गीत के द्वारा प्रस्तुत करती हैं तब ठसे नाट्यरासक की संज्ञा दी जाती है। साहित्यदर्पण में कुछ अधिक विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके अनुसार इसमें किसी उदात्त चरित्र का नायक के रूप में उपादान किया जाता है और पीठमर्द (नायक के समान तथा उससे घट कर गुणों वाल) उपनायक (सहायक) के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें ताल और लय तथा संगीत अधिक मात्रा में होता है । हास्य रस अंगी होता है और पुष्कल रुप में ङ्गार का समावेश किया जाता है। नायिका वासकसज्जा होती है अर्थात् एक स्त्री नायिका के रूप में शुङ्गार करके नायक के आने की प्रतीक्षा करती है और दूसरी नृत्य के साथ अभिनय करती हुई उसी के चारो ओर घूमती है । इसमें प्रतिमुख सन्धि का अभाव होता है। कभी कभी मुख सन्धि के बाद निर्वहण सन्धि आ जाती है और कभी कभी अन्य प्रासङ्गिक कथा का समावेश कर दिया जाता है जिससे गर्भ और विमर्श सन्धियों का भी समावेश हो जाता है। लास्य के सभी अंग इसमें आ जाते हैं। नर्मवती नाट्यरासक में दो सन्धियों का उपादान हुआ है और विलांसवती में चार अंकों का। भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने भारतदुर्दशा की रचना नाट्यरासक के रूप में की थी। किन्तु शास्त्रीय लक्षणों से उसका मेल नहीं बैठता। सम्भवतः भारतेन्दु की नाट्यशासक विषयक कल्पना कुछ भिन्न थी। किन्तु इसका उन्होंने उल्लेख नहीं किया। (३) उल्लाप्य- इसका निरूपण भावप्रकाशन में किया गया है। साहित्य दर्पण में इसका परिचय इस प्रकार दिया हुआ है- इसमें दिव्य वस्तु का उपादान होता है और इसका नायक उदात्त होता है। शिल्पक नामक उपरूपक में जो २७ अंग बतलाये गये हैं वे इसमें भी होते हैं। इसमें तीन रसों का समावेश होताहै- हास्य, शृङ्गार और करुण; संग्राम बहुत अधिक दिखलाया जाता है; आंसुओं का भी समावेश रहता है और संगीत जन्य मनोहरता भी रहती है। इसमें चार नायिकायें होती हैं। इसका उदाहरण है 'देवी महादेवम्’ कुछ लोगों के मत में इसमें कभी कभी ३ अंक भी होते हैं। (४) काव्य- इसका उल्लेख नृत्यपरक रूपक भेदों में दशरूपकम् में भी किया गया। है। इसके अतिरिक्त अग्नि पुराण, भाव प्रकाशन में भी इसको स्थान दिया गया है। इसमें