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पृष्ठम्:संस्कृतनाट्यकोशः.djvu/३९

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( तीस ) व्यक्ति होता है। श्मशान इत्यादि का वर्णन रहता है। आशंका, तर्क, सन्देह, ताप, उद्वेग, प्रसक्ति, प्रयल इत्यादि २७ अंगों में इसकी रचना की जाती है। उदाहरण- कनकावती।' = यह तीन या चार अंकों का ठपरूपक होता है। इसका नायक कोई पाखण्डी व्यक्ति हुआ करता है,करुण और शृङ्गार को छोड़कर अन्य रस होते हैं। नगरोपरोष, छल, उपद्रव का अभिनय किया जाता है। इसमें न तो कैशिकी वृत्ति होती है न भारती। ठदाहरण मायाकापालिक । (४) दुर्मल्लिका- नाट्यदर्पण में इसका नाम दुर्मिलिता माना गया है। किन्तु दोनों के लक्षणों में पर्याप्त अन्तरहै । नाट्यदर्पण की सम्मति में कोई दूती अश्लील कथाओं द्वारा युवक, युवतियों के चौर्यरत का वर्णन करती है औरउसकी बातें ग्राम्यकथाओं से भरी होती हैं। नीच जाति होने से धन मांगती है तथा मिल जाने पर और अधिक मांगती है। साहित्य दर्पण के अनुसार इसमें चार अंक होते हैं- वृत्तियां कैशिकी और भारती होती हैं। इसमें गर्म सन्धि नहीं होती, नागरिक व्यक्ति इसके पात्र होते हैं जिनकी संख्या बहुत कम होती है। पहला अंक ६ घड़ी का होता है जिनमें विट की हंसी मजाक चलती है; दूसरा अंक १० घड़ी का होता है जिसमें विदूषक की हंसी मजाक दिखलाई जाती है; तीसरे में पीठमर्द का विलास रहता है जो कि १२ घड़ी तक चलता है, चौथा अंक २० घड़ी तक चलता है जिसमें नायक की क्रीडा दिखलाई जाती है। उदाहरण- बिन्दुमती । (५) त्रोटक- इसका उल्लेख भाव प्रकाशन में भी हुआ है। इसमें ५9¢ या ९ अंक हो सकते हैं। इसका नायक दिव्य मानव होता है और विदूषक प्रत्येक अंक में रहता है। इसीसे सिद्ध होता है कि इसका अंगी शृङ्गार रस ही हो सकता है। इसके उदाहरण हैं- विक्रमोर्वशी, स्तम्भितरम्भक, मदलेखा, मेनकानहुष। (६) सदृक- इसमें अंको की संख्या नियत नहीं होती। इसके अंको को जवनिका कहा जाता है। न तो प्रवेशक होता है न विष्कम्भक, अद्भुत रस की मात्रा बहुत अधिक होती है। सभी बातों में यह नाटिका के समान होता है। उदाहरण- आनन्दसुन्दरी, कठूरमञ्जरी । (आ) एकाङ्की उपरूपक जैसा कि बतलाया जा चुका है इनकी संख्या १० होती है। इनमें अधिकांश में कैशिकी वृत्ति की प्रधानता होती है और सी पात्रों का अधिक्य रहता है। अधिकांश एकी ठपरूपकों में हास्य और शुङ्गार का प्रधान्य रहता है। कई उपरूपकों के उदाहरण नहीं पाये जाते, क्योंकि वास्तविक रूपक की अपेक्षा इनमें गीत नृत्य, वाद्य की प्रधानता रहती है और कहीं कहीं भूल नाट्य भी रहता है। कथा का व्याज बहुत क्षीण होता है। कुछ ही भेद ऐसे हैं जिनमें ब्दात्तता पाई जाती , अन्यथा मनोरञ्जन परक नृत्य इसमें अधिक रहते हैं। १० उपरूपकों का परिचय नीचे दिया जा रहा है