पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/८

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

चतुरानन, पंचानन और षडानन इन्द्र आदि सुरगण, गायन करते वामनादि अवतार-चरित भुले तन मन। तिथि वासर तारादि पढ रहे हैं भाषापति, नतशिर बन! शेषशैलस्वामिन्! जागो! तव सुप्रभात भगवान्॥६॥

कमलों का अधखुले, पृग नारिकेल मुकुलो का परिमल वहन किये मंद मंद गाति से संचारण कर रहा अनिल, दक्षिण दिशि से निकल, सुगांधि-भार से दिव्य बने बोझिल! शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवान्!॥७॥

खोल नेत्र- युगल केलीशुक, अपने श्रेष्ठ पंजरों में, बचे-खुचे कदलीफल, पेट भर खा, वर पात्रों में, रटने लगे तुम्हारे नाम हेलया कल कल नादों में, शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥८॥

नारद मी मह्ती वीणा के तार मिलाये सुस्वर में, तव अनन्त लील गुण गण सुमनोहर सुन्दर भाषा में, गायन करते हैं हाथ हिला, मूल शरीर मधुर रद में, शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवान्!॥९॥

फूले हुए निकट के कमलाकर में प्रमन गा रहे हैं, मकरंद के पान से छक,भौरों के झण्ड भा रहे हैं; सेवा करने को तुम्हारी सरसिज छोड आ रहे हैं; शेषशैलस्वामिन् जागो! होवे तव सुप्रभात भगवान्!॥१०॥