पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/१६

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भास्कर उदित हो रह हैं,सरसीरूह संप्रति विकसित्स् हैं! निज कल-कल नादों से वभ को करते खग गण मुखरित हैं! श्रीवैष्णव मम्गलप्रार्थी संतत तव वर धामाश्री हैं, श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्! होवे तव सुप्रभात भगवन्॥२६॥

चतुरानन इन्द्रादि अमरवर अपने साथ लिये ऋषि गुण, तथा सनंदन सनकादि संत संग लिये योगीश सुजन, प्रागंण में तव खडे,करो में थामे मंगल-द्रव्य सुमन श्रीमदवेंकटगिरिस्वामिन्!हिवे तव सुप्रभात भगवन्॥२७॥

लक्ष्मी का आश्रय प्रभु! अमल पुनीत सद्गुणों क सागर! भवसिंधु के पार पहुचाने वाल सेतु! सकल श्रम-हर! वेदान्त से वेद्य-वैभवयुत,भक्तों के भाग्य परात्पर! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्!हिवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२८॥


इस प्रकार वृषगिरिविभु का यह सुप्रभात-स्तव मनभावन, प्रतिदिन प्राःतकाल भक्ति-श्रध्दा-समेत जो नर शुचिमन पढते रहते हैं उन भक्तो को,श्रीपति का यह सुमिरन, परमार्थ-प्रदायिनी-प्रज्ञा प्राप्त कराता है पावन!॥२९॥

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