पृष्ठम्:श्रीवेङ्कटेश्वरसुप्रभातस्तोत्रम्.pdf/१४

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श्रीदेवी-भूदेवी-रमण! दयदिगुणामृत का सागर, देवों के अधिदेव! जगतका एकमात्र् आश्रय, भवहर! श्रीमन् गरूद अनंत आदि भक्तार्चितपदयुग!सुषमाकर! श्रीमदवेम्कटगिरिस्वमिन्!होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२१॥

सरसिजनाभ! हरे पुरूषोतम!वासुदेव,श्रीपति!स्वमिन्! हे वैकुंठपति!लक्ष्मीधव!चक्रधर!जनार्धन!वर भूमन्! श्रीवत्सांकित प्रभु! शरणगतभक्तकल्पभूरूह!श्रीमन् श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्! होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२२॥

गर्वध्दत कंदर्प-दर्प-हर!सुंदर दिव्य रूपसागर! कान्ता-कुच-सरसिज कुडमल-केलीरत लोलोनेत्र्!नागर! दिव्ययशोमंडित !पावन कल्याणगुणागणें का आकर! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्!होवे तव सुप्रभतम् भगवन्॥२३॥

मत्स्-रूप,कच्छप,वराह, वामन,नरसिंह,भक्तवत्सल! भार्गव-तपी परशुध्ह्री!श्रीरामचन्द्र, शरणद,निश्छ्ल! शेष-रूप बलरम,कृष्णा यदुनन्दन,कल्कि प्रणतजनबल! श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन्!ह्प्वे तव सुप्रभातम् भगवन्!॥२४॥

नभ गंगा का निर्मल जल सोने के कलशों में भर कर, लौंग,इलाइची व घनसार सुगंधिपूर्ण सिर पर दर कर वर वैदिक जन-विभोर।खडे हैं सब सेवा-श्रत दर, श्रीमदवेंकटगिरिस्वमिन् होवे तव सुप्रभातम् भगवन्॥२५॥