पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/८

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श्रीविष्णुगीता ! पृष्ठाङ्क PPPINTF विषय देवताओंके द्वारा स्तुति । (४) देवताओं के द्वारा महाविष्णुकी"विश्वसेव्या, सर्वात्मक" " जगद्रूप” “विश्वाधार" " जगन्मूलमूलभूत" "मोहहेतु" “स्थूलसूक्ष्मलोकसम्बन्धस्थापक" "सृष्टिशोभादिनिर्माण में कुलगेहरूप" " सत् असत् और सद्सतसे अतीत" " नित्यशक्त ""सर्वधाता" सच्चिदानन्द" "भक्तिहेतु" "सर्वेश्वर" पञ्चदेवात्मक" और "शरणागतवत्सल" इन विशेषणोंके भावोंको लेकर विस्तृत और परमअद्भुत स्तुति श्रीर मोहापनोदक उपदेशकी याञ्चा जिससे भय ताप और प्रभाव का नाश हो ... .... महाविष्णुकी आज्ञा ।' (५) स्तुतिसे महाविष्णुकी प्रसन्नता, सदाचारत्यागसे ही देवताओंके वर्तमान दुःखोंकी उत्पत्ति, सदाचारका ब्रह्म सद्भावसे सम्बन्धक्रम............ .. .. ...११-१३ (६) तापत्रयका हेतु अज्ञान है, ज्ञानवानही निर्भय होकर मुक्त होसक्ता है, अभ्यास, साधारण शान, ध्यान, कर्मफलत्याग और शान्ति, इनका उत्तरोत्तर श्रेष्ठत्व, ज्ञानीकी अवस्था और उसका फल ............... .१३-१४ देवताओंकी जिज्ञासा | Temple (७) निर्भयमार्गमें अग्रसर करनेवाले अभ्यासादिकी । आानुक्रमिक जिज्ञासा ............ ॐRTI महाविष्णुकी आज्ञा । (E) इन्द्रियोंके द्वारा विषयों में आसक्तिही स्वर्गनरका- दि-प्राप्ति, आवागमन और परम दुःखका कारण है, विषय वैराग्यसे शिथिलबन्धन साधक ज्ञान प्राप्त करके उन्नत अधिकारको प्राप्त होता है, नश्वर शरीर-सम्बधीय भय भ्रान्ति- मूलक है, वैराग्यवर्णनके प्रसङ्गसे दृश्य प्रपञ्चका यथार्थ स्वरूप