पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१९१

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(१३) किसी मेम्बरकी मृत्यु होनेपर वह मेम्बर यदि किसी महामण्डलकी शाखासभाका सभ्य हो अथवा किसी शाखासभाके निकटवर्ती स्थानमें रहनेवाला हो तो उसके निर्वाचित व्यक्तिका फर्ज होगा कि वह उक्त शाखासभाकी कमेटीके मन्तव्यकी नकल श्रीमहामण्डल प्रधान कार्यालयमें भिजवावे । इस प्रकारसे शाखा- सभाके मन्तव्यकी नकल आने पर कमेटी समाजहितकारी कोषसे सहायता देनेके विषयमें निश्चय करेगी। (१४) जहाँ कहीं के सभ्योंको इस प्रकारकी शाखासभाकी सहायता नहीं मिल सकती है या जहाँ कहीं निकट शाखासभा नहीं है ऐसी दशामें उस प्रान्तके श्रीमहामण्डल के प्रतिनिधियों से किसीके अथवा किसी देशी रजवाड़ोंमें हो तो उक्त दर्वारके प्रधान कर्मचारीके सार्टिफिकिट मिलनेपर सहायता देनेका प्रबन्ध किया जायगा। (१०) यदि कमेटी उचित समझेगी तो बालाबाला खबर मंगाकर सहायताका प्रबन्ध करेगी जिससे कार्यमें शीघ्रता हो। अन्यान्य नियम। (१६) महामण्डलके अन्य प्रकारके सभ्यों में से जो महाशय हिन्दू समाजकी उन्नति और दरिद्रोंकी सहायताके विचारसे इस कोषमें कमसे कम :) दो रुपया सालाना सहायता करने पर भी इस फण्डसे फायदा उठाना नहीं चाहेंगे वे इस कोषके परिपोषक समझे जायेंगे और उनकी नामावली धन्यवाद सहित प्रकाशित की जायगी। (१७) हरएक साधारण मेम्बरको- चाहे स्त्री हो या पुरुष - प्रधान कार्यालयसे एक प्रमाणपत्र जिसपर पञ्चदेवताओं की मूर्ति और कार्यालयकी मुहर होगी-साधारण मेम्बरके प्रमाणरूपसे दिया जायगा। (१८) इस विभागमें जो चन्दा दंगे उनका नाम नम्बर सहित हर वर्ष रसीदके तौर पर वे जिस भाषाका मासिक पत्र लेंगे उसमें छापा जायगा । यदि गल्तीसे किसीका नाम न छपे तो उनका फर्ज होगा कि प्रधान कार्यालयमें पत्र भेजकर अपना नाम छपवावें; क्योंकि यह नाम छपना ही रसीद समझी जायगी। -