पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१८२

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होंगी । उनका मूल्यः-श्रीशम्भुगीता का ॥) विष्णु गीताका ॥) और धीशगीताका ॥) रक्खा गया है। मैनेजर, निगमागम बुकडीपो, महामण्डलभवन, जगत्गंज, बनारस। धार्मिक विश्वकोष । (श्रीधर्मकल्पद्रुम) यह हिन्दू धर्मका अद्वितीय और परमावश्यक ग्रन्थ है । हिन्दू जाति की पुनरुन्नति के लिये जिन जिन आवश्यकीय विषयों की ज़रूरत है उनमें सबसे बड़ी भारी ज़रूरत एक ऐसे धर्म ग्रन्थकी थी कि जिसके अध्ययन अध्यापन के द्वारा सनातन धर्म का रहस्य और उसका विस्तृत स्वरूप तथा उसके अङ्ग उपाङ्गो का यथार्थ ज्ञान प्राप्त हो सके और साथ ही साथ वेदों और सब शास्त्रोंका आशय तथा वेदों और सब शास्त्रों में कहे हुए विज्ञानो का यथाक्रम स्वरूप जिज्ञासुको भलीभाँति विदित हो सके । इसी गुरुतर अभावको दूर करनेके लिये भारतके प्रसिद्ध धर्मवक्ता और श्रीभारतधर्म महामण्डलस्थ उपदेशक महाविद्यालय के दर्शन शास्त्रके अध्यापक श्रीमान् स्वामी दयानन्दजीने इस ग्रन्थका प्रणयन करना प्रारम्भ किया है । इसमें वर्तमान समय के आलोच्य सभी विषय विस्तृतरूपले दिये जायंगे। अबतक इसके पांच खण्डो- में जो अध्याय प्रकाशित हुए हैं, वे ये हैं:---धर्म, दानधर्म, तपो. धर्म, कर्मयज्ञ, उपासनायज्ञ, ज्ञानयज्ञ, महायज्ञ, वेद, वेदाङ्ग, दर्शनशास्त्र(वेदोपाङ्ग), स्मृतिशास्त्र, पुराणशास्त्र, तन्त्र शास्त्र, उपवेद, ऋषि और पुस्तक, साधारण धर्म और विशेष धर्म, वर्णधर्म, आश्रमधर्म, नारीधर्म (पुरुषधर्मसे नारीधर्मकी विशेषता), आर्य- जाति, समाज और नेता, राजा और प्रजाधर्म, प्रवृत्तिधर्म और निवृत्तिधर्म, आपद्धर्म, भक्ति और योग, मन्त्रयोग, हठयोग, लय- योग, राजयोग, गुरु और दीक्षा, वैराग्य और . 9 साधन, प्रात्म