पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१८३

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तत्त्व, जीवतत्त्व, प्राण और पीठतत्त्व, सृष्टि स्थिति प्रलयतत्त्व, ऋषि देवता और पितृतत्त्व, एवं अवतारतत्त्व । आगेके खण्डोंमें प्रकाशित होने वाले अध्यायोंके नाम ये हैं:-त्रिभावतत्त्व, मायातत्त्व, मुक्तितत्त्व, दर्शन समीक्षा, साधनसमीक्षा, सम्प्रदाय और उपधर्म- समीक्षा, चतुर्दशलोकसमीक्षा, काल-समीक्षा, जीवन्मुक्ति-समीक्षा, सदाचार, पञ्च महायज्ञ, आहनिककृत्य, षोडश संस्कार, श्राद्ध, प्रेतत्व और परलोक, सन्ध्या-तर्पण, ओंकार-महिमा और गायत्री, भगवन्नाम माहात्म्य, वैदिक मन्त्रों और शास्त्रोका अपलाप, तीर्थ- महिमा, सूर्य्यादिग्रह-पूजा, गोसेवा, संगीत-शास्त्र, देश और धर्म सेवा इत्यादि इत्यादि । इस ग्रन्थसे आजकलके अशास्त्रीय और विज्ञान-रहित धर्मग्रन्थों और धर्मप्रचारके द्वारा जो हानि हो रही है वह सब दूरहोकर यथार्थ रूपसे सनातन वैदिक धर्म- का प्रचार होगा। इस ग्रन्थरत्नमें साम्प्रदायिक पक्षपात का लेश- मात्र भी नहीं है और निष्पक्षरूपसे सब विषय प्रतिपादित किये गये हैं, जिससे सकल प्रकारके अधिकारी कल्याण प्राप्त कर सकें। इसमें और भी एक विशेषता यह है कि हिन्दूशास्त्रके सभी विज्ञान शास्त्रीय प्रमाणों और युक्तियों के सिवाय, आजकलकी पदार्थ विद्या ( Soience ) के द्वारा भी प्रतिपादित किये गये हैं जिससे आज कलके नवशिक्षित पुरुष भी इससे लाभ उठा सकें। इसकी भाषा सरल, मधुर और गम्भीर है । यह ग्रन्थ चौसठ अध्यायों और पाठ समुल्लासों में पूर्ण होगा और यह बृहत् ग्रन्थ रायल साइज के चार हजार पृष्ठोंसे अधिक होगा तथा दस या बारह खण्डों में प्रकाशित होगा। इसी के साथ अन्तिम खण्डमें आध्यात्मिक शब्दकोष भी प्रकाशित करनेका विचार है। इसके पाँच खण्ड प्रकाशित हो चुके है। प्रथम खण्डका मूल्य २), द्वितीय का १॥), तृतीयका २), चतुर्थ का २) और पंचमका २) है । इसके प्रथम दो खण्ड बढ़िया कागज पर भी छापे गये हैं और दोनों ही एक बहुत सुन्दर जिल्दमें बांधे गये हैं। मूल्य ५) है।छठ्ठा खण्ड यन्त्रस्थ है। मैनेजर, निगमागम बुकडीपो, महामण्डलभवन, जगत्गज, बनारस।