पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१७७

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गये हैं। T (५) राजशिक्षासोपान । राजा महाराजा और उनके कुमारों- को धर्मशिक्षा देनेके लिये यह ग्रन्थ बनाया गया है। परन्तु सर्व- साधारणकी धर्मशिक्षाके लिये भी यह ग्रन्थ बहुतही उपयोगी है। इसमें सनातनधर्मके अङ्ग और उसके तत्त्व अच्छी तरह बताये मूल्य =) तीन आना। साधनसोपान । यह पुस्तक उपासना और साधनशैलीकी शिक्षा प्राप्त करने में बहुतही उपयोगी है । इसका बंगला अनुवाद भी छुपचुका है । बालक बालिकाओंको पहलेहीसे इस पुस्तकको पढ़ाना चाहिये। यह पुस्तक ऐसी उपकारी है कि बालक और वृद्ध समानरूप से इससे साधनविषयक शिक्षा लाभ कर सक्त हैं । मूल्य = ) दो आना। शास्त्रसोपान । सनातनधर्मके शास्त्रोंका संक्षेप सारांश इस ग्रन्थमें वर्णित है । सब शास्त्रोंका कुछ विवरण समझनेके लिये प्रत्येक सनातनधर्मावलम्बीके लिये यह ग्रन्थ बहुत उपयोगी मूल्य । ) चार आना। धर्मप्रचारसोपान। यह ग्रन्थ धर्मोपदेश देनेवाले उपदेशक और पौराणिक पण्डितोंके लिये बहुतही हितकारी है। मूल्य ३) तीन आना। उपरि लिखित सब ग्रन्थ धर्मशिक्षाविषयक हैं। इस कारण स्कूल, कालेज व पाठशालाओंको इकट्ठ लेने पर कुछ सुविधा से मिल सकेगें और पुस्तकविक्रेताओंको इनपर योग्य कमीशन दिया जायगा । उपदेशपारिजात । यह संस्कृत गद्यात्मक अपूर्व ग्रन्थ है। सनातनधर्म क्या है, धर्मोपदेश किसको कहते हैं, सनातनधर्मके सब शास्त्रों में क्या विषय हैं, धर्मवक्ता होनेके लिये किन २ योग्यताओं के होने की आवश्यकता है इत्यादि अनेक विषय इस ग्रन्थ में संस्कृत विद्वानमात्रको पढ़ना उचित है और धर्मवक्ता, धर्मोपदेशक, पौराणिक, पण्डित आदिके लिये तो यह ग्रन्थ सब समय साथ मूल्य ॥) आठ आना। इस संस्कृत ग्रन्थ के अतिरिक्त संस्कृत भाषामें योगदर्शन, सांख्यदर्शन, दैवीमीमांसादर्शन आदि दर्शन सभाष्य, मन्त्रयोग- संहिता, हठयोगसंहिता, लययोगसंहिता, राजयोगसंहिता, हरिहर-