पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१६२

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श्रीविष्णुगीता। १.४२ यावन्तस्तेऽसुराश्चैव तामस्यो मे विभूतयः ॥ ५४॥ बीजं मां सर्वभूतानां वित्त देवाः ! सनातनम् । बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥ ५५ ॥ बलं बलवतामस्मि कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि विबुधर्षभाः ! ॥ ५६ ॥ अहं ऋतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम् । मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम् ॥ ५७ ॥ पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामहः । वेधं पवित्रमोंकार ऋक् साम यजुरेव च ॥ ५८॥ ज्योतिषामंशुमान् सूर्यो वित्तेशो यक्षरक्षसाम् । मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ।। ५९ ॥ वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः । इन्द्रियाणां मनश्चाऽस्मि भूतानामस्मि चेतना ॥ ६० ।। हैं वे मेरी तामसिक विभूतियां हैं ॥ ५४॥ हे देवगण ! सब भूतोका सनातन बीज मुझको जानों मैं बुद्धिमानोंमें बुद्धि और तेजस्वियोंमें तेज हूं ॥ ५५ ॥ हे देवश्रेष्ठो ! बलवानों में मैं काम और रागसे रहित बल हूं और भूतोंमें धर्माविरुद्ध अर्थात् धर्मके अनुकूल काम हूं n५६॥ मैं क्रतु (श्रोत अग्निष्टोमादि यज्ञ ) हूँ,मैं यज्ञ (पञ्च महायज्ञादि ) हूं, मैं स्वधा हूं, मैं औषध हूँ, मैं मन्त्र हूं, मैं आज्य (घृत) हूँ, मैं अग्नि हूँ और मैं आहुति हूं॥५७॥ इस विश्वका मैं पिता, माता, धाता (धारण और पोषण करने वाला ) और पितामह हूं । जानने के योग्य मैं हूं, पवित्र ओंकार मैं हूँ तथा ऋक् यजुः और साम मैं हूँ ॥५॥ ज्योति- यो में मैं किरणमाली सूर्य हूं, यक्ष रक्षोगणमें वित्तेश ( कुवेर ) हूं, मरतोंमें मरीचि हूं और नक्षत्रोंमें मैं शशी ( चन्द्रमा ) हूँ ॥ ५ ॥ वेदोमें सामवेद हूँ, देवताओंमें इन्द्र हूं, इन्द्रियोंमें मन हूं और प्राणि-