पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१४

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श्रीविष्णुगीता । विषय सान्तता, सब समय भगवत्स्मरणका आदेश, मृत्युकालीन साधन, अनन्य भक्तिका महत्त्व और उसका फल, राक्षसी आसुरी और दैवी प्रकृति-सम्पन्न व्यक्तियों के भाव, देवीप्रकृति-सम्पन्न व्यक्तियों के साधनभेद ...... ६४-१०१ (४) भक्तिसे अर्पित क्षुद्र वस्तुंकाभी स्वीकार, पापात्मा - की भी भक्त होने से मुक्ति, अनन्य भक्ति करनेका आदेश और उसका फल, अव्यक्तोपासना से कर्मयोगका श्रेष्ठत्व, " अभ्यास, कर्म और कर्मफलत्याग" असमर्थता होनेसे इनका उत्तरोत्तर ग्रहण, भगवान के प्रियभक्तके लक्षण... १०१-१०६ षष्ठ अध्याय ज्ञानयोगवर्णन ... .... .... १०७-१३० देवताओंकी जिज्ञासा । (१) ज्ञानका स्वरूप, वैदिक ज्ञानकाण्डका रहस्य,ज्ञान अज्ञान और ज्ञानी का लक्षण और आत्मज्ञानविषयक जिज्ञासा ... ... ... ... .... ... ... ... १०७ महाविष्णुकी आज्ञा । (२) त्रिविधज्ञान और स्वरूप, ज्ञानका अधिकारी, तटस्थ ज्ञानकी तीन भूमिकाओं के लक्षण, द्विविध प्रकृति और उसका कार्य, ज्ञानका लक्षण और उसकी प्राप्ति में श्रीगुरु कृपाकी आवश्यकता, ज्ञानप्राप्तिका उपाय और उसका फल.ी ज्ञानकी उत्कृष्टता, ज्ञानप्राप्तिका अधिकारी, ज्ञान से अज्ञान का नाश करना .. . . .. ... ... १००-११३ (३) साम्यभावका लक्षण, ब्रह्मवित्का लक्षण, युक्तका लक्षण, नवविध प्रकृति, क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रका स्वरूप, ज्ञेयका स्वरूप,प्रकृति पुरुष और परमात्मा का कार्य, क्षेत्र और क्षेत्रज्ञकी व्यापकता, परमेश्वर की समभावसे व्यापकता, PET प्रकृतिका कर्मकर्तृत्व और आत्माका अकर्तृत्व ... ११३-११४ (४) परमात्माकी निर्लिप्तता, सृष्टिका तत्त्व, अधिष्ठान PUT