पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१३

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विषयानुक्रमणिका।

विषय पृष्ठाङ्क र्म्मत्व, कर्म से ही सिद्धि, लोकसंग्रहार्थ कर्म्मों की अवश्य कर्तव्यता ... ... ... ... ... ७-७६ (४) भगवान्की कर्ममें प्रवृत्तिका तत्व, लोकसंग्रहार्थ और बुद्धिभेद न करते हुए कर्म्मोंका करना, कर्मकर्तृत्वका कर आत्मामें वृथा आरोप, रागद्वेषसे रहित होना, स्वधर्म में ) मरण कल्याणप्रद है, भगवानको कर्म्मों में निर्लिप्त जाननेसे . कर्मसे मुक्ति, कर्म अकर्म और विकर्मवर्णन, पण्डितका लक्षण, युक्त और अयुक्त, कर्म और शमका आरुरुक्षु तथा योगारूढ़से सम्बन्ध, योगारूढ़ का लक्षण ......ri... ७९-८४ (५) योगभ्रष्टकी गति, अन्ते मतिः सा गतिः, कर्मयोगीकी सर्वोत्कृष्टता ... ... ... ... .......८५-८६ पञ्चम अध्याय । भक्तियोगवर्णन ...........८७-१०६ P-देवताओंकी जिज्ञासा ग र (१) भगवत्प्राप्तिके मार्ग और साधनविषयक जिज्ञासा ... ८७ महाविष्णुकी आज्ञा । (२) पराभक्तिका अधिकार और उसका फल एवं उस की प्राप्ति न होने तक सगुणोपासनाकी आवश्यकता, रागात्मिका भक्तिमें लीलामय अवतारोंके उपासनाकी आवश्यकता, निर्गुण सगुण एवं लीलामय विग्रहोंकी एकता, अवतारोके भेद समय और प्रयोजन, भगवज्ञानसे भगवद्भावकी प्राप्ति, कर्मों के द्वारा सिद्धिकी शीघ्र प्राप्ति, वैधी और रागात्मिका भक्ति चतुर्विध योग, उनके कुछ साधनप्रकार और फल ...८७-९३ (३) युक्त का लक्षण और उसकी दशा, मनोवशीकार का उपाय, अभ्यास और वैराग्यसे मनोनिग्रह, चतुर्विध भक्तोंका लक्षण, ज्ञानिभक्तकी सर्वोत्कृष्टता और उसकी गति, श्रद्धापूर्वक जिस किसी देवताकी अर्चनाका फल और उसकी।