पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१२

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श्रीविष्णुगीता। TEETTE विषय महाविष्णकी आज्ञा (१) ब्रह्म अध्यात्म कर्म अधिभूत अधिदेव और अधियज्ञके लक्षण, ओं. तत् सत् इस मन्त्रकी विस्तृत व्याख्या और तत्त्वज्ञानके मूलवर्णन-प्रसंगमें त्रिभावोका.

स्वरूप वर्णन, जीवात्माका स्वरूप, क्षर अक्षर और परमास्माका लक्षण और परमात्मशानसे सर्वज्ञता प्राप्ति ... ६४-६६

चतुर्थ अध्याय।... कर्मयोगवर्णन ... ... ..६९-१६ ...देवताओंकी जिज्ञासा । (१) सृष्टि के निदान, उसकी उत्पत्तिके प्रयोजन, उसके प्रवर्तक और उसके मूलनिर्मूलनके उपायकी जिज्ञासा ६६ महाविष्णुकी आज्ञा (२) सृष्टिप्रवाहके प्रवर्तक भगवान हैं, महामाया उसकी जननी है, सृष्टि स्थिति लयका कारण कम है, प्रकृति के दो भेद, त्रिगुणमयी प्रकृतिका कर्म्मोत्पत्ति-हेतुत्व, त्रिविध कम्मों के लक्षण और उनसे सृष्टि स्थिति लयका जीवोंका एवं देवता ऋषि पितरोंका सम्बन्ध, जैव कर्मका शुद्धा- शुद्ध भेद और उनसे पुण्यपाप वासनाप्रवाह एवं सृष्टि-मा प्रवाहका सम्बन्ध, वासनानाशसे जैव कर्मकी सहज तथा ऐश कर्ममें परिणति ....... (३) कर्मयोगकी दशाका वर्णन, शुक्ल कृष्ण गति और उनके साथ निवृति और प्रवृत्तिका सम्बन्ध, सहजगति...और उसके अधिकारी, कर्मगतिका दुर्ज्ञेयत्व और उसका उदाहरण, सहजगतिमें मृत्युके लिये स्थानविशेषकी अनावश्यकता, कर्मयोगी होनेका उपदेश, कर्मयोगका लक्षण और उसका फल, कर्मयोगीकी दशा, कर्मयोग और ज्ञानयोग, कर्मयोगकी श्रेष्ठता, यज्ञार्थ कर्माका अक