पृष्ठम्:श्रीविष्णुगीता.djvu/१५

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विषयानुक्रमणिका ।

विषय

पृष्ठाङ्क कर्ता करण चेष्टा और दैवके द्वारा सब कर्म्मों का होना निर्लिप्तका लक्षण, ज्ञानी और अज्ञानीकी रात्रि, स्थितप्रज्ञका लक्षण, सङ्ग काम क्रोध मोह स्मृतिविभ्रम और बुद्धिनाश की कारणपरम्परा, प्रसाद का लक्षण, इन्द्रियसंयम का फल ... ... ... ... ... ... ... ... ... १२०-१२५ देवताओंकी जिज्ञासा। (५) सन्न्यासके लक्षण और उसके रहस्य की जिज्ञासा ...१२५ 23- ... महाविष्णुकी आज्ञा। (६) कर्मसन्न्याससे कर्मयोग की श्रेष्ठता, ज्ञानयोग और कर्मयोग का समानफलजनकत्व, कर्मयोगके विना सन्न्यासप्राप्तिमें काठिन्य, कर्मयोगी की दशा, सन्यासी और योगी का लक्षण, कर्मफल को भगवान्में अर्पण करनेसे सन्न्यास का होना, कर्मन्यास और त्याग विषयक निर्णय, त्यागी का लक्षण, ब्रह्मीभूत का लक्षण, भगवान में सब कर्म्मों का अर्पण ... ... ... ... १२६-१३० सप्तम अध्याय hisops (2 विश्वरूपदर्शनयोगवर्णन ......... १३१--१५२ देवताओंकी जिज्ञासा। (१) "किस रूपमें चिन्तन करनेसे हम आपको प्रतिक्षण प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि अब हम आपके विरहको सहन नहीं कर सकते" इस प्रकारकी देवताओं की जिज्ञासा ... १३१ mins महाविष्णुकी आज्ञा । (२) प्रसन्नता पूर्वक देवताओंको दिव्यचक्षुप्रदान, दिव्य : चक्षुके द्वारा विज्ञानमय कोषमें स्थित होनेसे प्रतिक्षण विराट रूपको दर्शन होसकेगा ऐसी आज्ञा ........ १३२ व्यासदेवकी आज्ञा । (३) महाविष्णुके द्वारा दिव्यचक्षुको प्राप्त करके समा