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श्रीललितासहस्रनामावलिः
पञ्च ब्रह्मासनस्थितायै | मूल मन्त्रात्मिकायै | |
महाषmटवीसंस्थायै | मूलकूटत्रयकलेबरायं | |
ओं ४ कदम्बवनवासिन्यै | 3-४ कुलामृतैकरसिकायं | |
ओं-४ सुघसागरमध्यस्थयं | ओं-४ कुलसङ्केतपलिन्यं | |
कथमक्ष्यं | कुलाङ्गनाय | |
कामदायिन्यै | कुलान्तस्स्यथर्षे | |
देवीषगषस छातस्तूयमानामवैभवायं | कोलिन्यं | |
भण्डासुरवधोद्युतशक्तिसेनासमन्वितापं | कुलयोगिन्यं | |
सम्पक रोसमावसिन्धुरद्वाजसेवितायै | अकुलयं | |
अश्वारूढाधिळिताश्वकोटिकोटिभिरा | समयान्तस्य॥ | |
वृता में | समयाचारतत्परायं | |
चक्रराजरथरूढसंयुघपरिष्कृतये | मूलघारैकनिलयायं | |
गेयचक्ररथारूढमन्त्रिणी परिसेविताये | श्रों- ब्रह्मग्रन्थिविभेदियं | १०० |
ऑ४ किरिचक्ररथारूढण्यनाथपुरस्कृतार्षे | श्रों- मणिपूरान्त रुदितायै । | |
ऑों-४ ज्वालामालिनिकाक्षिप्तर्वह्निप्राकारः | विष्णु प्रन्थिविभंदिग्यं | |
मध्यगायै | आज्ञा चक्रन्तरालस्थयं | |
भण्डसैन्यबधोद्युक्तशक्तिविमहषिताएँ | रुद्रग्रन्थिविभेदिन्ये | |
नित्यपराक्रमाटोषनिरीक्षणसमुत्सुकायं | सहस्राराम्बुजारुतायै | |
भण्डपुत्रवधोद्युक्तबालाविक्रममन्दितायं | सुधासराभिर्वाषण्यै । | |
मन्त्रिण्यम्बादिरचितविषङ्गयक्षतोषितायें | तटिहलतासभरुच्चै | |
विंशुकप्राणहरणवाराहैवीयंनन्दिता | षट्चकोपरिसंस्थितायै । | |
कामेश्वरमखलोककल्पितश्रीगणेश्वंशरायं | महासवस्ये | |
महागणेशनिभिन्नविघ्नयन्त्रमर्षितायं | ओं-४ कुण्डलिन्यै | |
भण्डासुरेन्द्रनिर्मुक्तशस्त्रप्रत्यस्त्रवर्षष्ये | ऑ•४ बिसतन्नुतनीयस्यै | |
ओं- ४ करभङ्गुलिनखोत्पन्ननारायणदश | भवन्यि | |
तये | भावनागम्यार्षे | |
ऑ४ महापाशुपतास्त्राग्निनिर्दग्धासुर- | मवारण्यकृद्वारिकायं | |
संनिफा | भद्रप्रयायै | |
कामेश्वरास्त्रनिर्दग्धभण्डासुरंशून्यकायै | भद्रमूर्तये | |
ब्रह्मोपेन्द्रमहेन्द्रादिदेवसंस्तुतवैभवायं | भाससौभाग्यदायिन्यै | |
हरनेत्राग्निसम्दग्धकामसञ्जीवनौषधये | भक्तिप्रियायै । | |
श्रीमद्मवकूटेकस्वरूपमुखपङ्कजयं | भक्तिगम्यायै | |
कण्ठघःकटिपर्यन्तमध्यकूटस्वरूपिण्यै | ऑ४ भक्तिवश्याये | |
शक्तिकटैकतापन्नकटमधोभागभरिण्यै | ओं-४ मथपह्य |