पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
७१ | निमिवंशवर्णनम् | .... .... ४७९ |
७२ | कन्यावरणम् | .... .... ४८३ |
७३ | सीतादीनां विवाहः | .... .... ४८९ |
७४ | परशुरामाभियोगः | .... .... ४९८ |
७५ | वैष्णवधनुःप्रशंसा | .... .... ५०२ |
श्लोकसङ्ख्या | ७१ | |
जनकोऽपि तदोवाच निमिवंशपरंपराम् ॥ | .... | ४७९ |
९९ निश्चिक्युर्लक्ष्मणादीनां विवाहमपि ते तदा । | .... | ४८१ |
सीता रामाय देयेति लक्ष्मणायोर्मिला तथा ॥ | .... | ४८३ |
७२ | ||
१०० माण्डवी भरतायेति श्रुतकीर्तिः कनीयसे । | .... | ४८५ |
रामादीनां ततश्चक्रे राजा गोदानमङ्गलम् ॥ | .... | ४८७ |
७३ | ||
१०१ तदाऽऽगच्छत् युधाजिच्च साक्षाद्भरतमातुलः । | .... | ४८९ |
ततः पुत्रैर्दशरथो यज्ञशालामुपागमत् ॥ | .... | ४९१ |
१०२ वसिष्ठस्त्वकरोत्सर्वं विधिवन्मन्त्रपूर्वकम् । | .... | ४९३ |
शुभे मुहूर्ते सीतायाः पाणिं जग्राह राघवः ॥ | .... | ४९५ |
१०३ जगृहुश्चोर्मिलादीनां पाणीन् लक्ष्मणपूर्वकाः । | .... | ४९७ |
७४ | ||
ततः पुत्रैः स्नुषाभिश्चायोध्यां दशरथो ययौ ॥ | .... | ४९९ |
१०४ मार्गे परशुरामस्तु समागच्छत् सुदुस्सहः । | .... | ५०१ |
७५ | ||
स्कन्धे चासज्य परशुं गृहीत्वा वैष्णवं धनुः ॥ | .... | ५०३ |
१०५ स्वयं तु कथयामास स वैष्णवधनुः कथाम् । | .... | ५०५ |
शैवचापाञ्च वैशिष्ट्यं तस्य चापस्य सोऽब्रवीत् ॥ | .... | ५०७ |
१०६ शैवस्य धनुषो भङ्गं व्यडम्बयत गर्वितः । | .... | ५०९ |
धनुषो वैष्णवस्यास्य त्वारोपाय समाह्वयत् ॥ | .... | ५११ |