पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
६६ | शैवधनुःप्रशंसा | .... .... ४५१ |
६७ | धनुर्भङ्गः | .... .... ४५७ |
६८ | दशरथाह्वानम् | .... .... ४६३ |
६९ | दशरथजनकसमागमः | .... .... ४६७ |
७० | इक्ष्वाकुवंशवर्णनम् | .... .... ४७० |
श्लोकसङ्ख्या | ६६ | |
विश्वामित्रस्ततो रामं जनकाय न्यवेदयत् ॥ | .... | ४५१ |
९२ अब्रवीज्जनकस्तेभ्यः तदा शैवधनुःकथाम् । | .... | ४५३ |
यद्धनुर्देवराताय पूर्वं तु गिरिशो ददौ ॥ | .... | ४५५ |
६७ | ||
९३ जनकस्याज्ञया भृत्या आनिन्युस्तत्र तद्धनुः । | .... | ४५७ |
कौशिकप्रेरितो रामः पूरयामास तद्धनुः ॥ | .... | ४५९ |
९४ तद्भग्नं वीर्यशुल्कां तु सीतां प्राप स राघवः । | .... | ४६१ |
६८ | ||
जनकस्त्वाजुहावाथ दूतैर्दशरथं नृपम् ॥ | .... | ४६३ |
९५ जात्वा दशरथ: सर्वं प्रतस्थे मिथिलां पुरीम् । | .... | ४६५ |
६९ | ||
वसिष्ठवामदेवाद्यास्त्वनुजग्मुर्मुदा नृपम् ॥ | .... | ४६७ |
९६ ते सर्वे मिथिलां प्रापुः, जनकस्तानपूजयत् । | .... | ४६९ |
७० | ||
तदैव जनकभ्राताऽप्याजगाम कुशध्वजः ॥ | .... | ४७१ |
९७ सुखोपविष्टास्ते सर्वे यथार्हं त्वासनेषु ते । | .... | ४७३ |
वसिष्ठः कथयामास सूर्यवंशपरंपराम् ॥ | .... | ४७५ |
९८ ततस्स वरयामास रामाय जनकात्मजाम् । | .... | ४७७ |