पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
६१ | शुनश्शेफोपाख्यानोपक्रमः | .... .... ४२१ |
३२ | शुनश्शेफोपाख्यानम् | .... .... ४२६ |
६३ | मेनकासङ्गमः | .... .... ४३२ |
६४ | रम्भाशापः | .... .... ४३८ |
६५ | ब्रह्मर्षित्वप्राप्तिः | .... .... ४४३ |
श्लोकसङ्ख्या | ६१ | |
तस्मिन् कालेऽम्बरीषस्य जह्वे यज्ञपशुं वृषा ॥ | .... | ४२३ |
८५ स त्वक्रीणात् शुनश्शेफं पशुप्रतिनिधिं नरम् । | .... | ४२५ |
६२ | ||
स दीनः शरणं प्राप विश्वामित्रं तपोधनम् ॥ | .... | ४२७ |
८६ उपादिशत्स गाथे द्वे दिव्ये प्राणप्रदे मुदा । | .... | ४२९ |
ते जपन् स शुनश्शेफो दीर्घमायुरवाप्तवान् ॥ | .... | ४३१ |
६३ | ||
८७ ततो मेनकया सङ्गात् निवृत्तस्तपसो मुनिः । | .... | ४३३ |
अथो निर्विण्णहृदयः पुनस्तेपे स कौशिकः ॥ | .... | ४३५ |
८८ तद्दृष्ट्वा संभ्रमं प्रापुः सुराः सेन्द्रमरुद्गणाः । | .... | ४३७ |
६४ | ||
प्राहिण्वन् तस्य नाशार्थं रम्भामप्सरसं सुराः ॥ | .... | ४३९ |
८९ शशाप रम्भां स क्रोधात्, अथ सन्तापमागतः । | .... | ४४१ |
६५ | ||
पुनश्च स महाघोरं तपश्चक्रे सुदुष्करम् ॥ | .... | ४४३ |
९० ततो ब्रह्माज्ञया सोऽयं ब्रह्मर्षित्वमविन्दत । | .... | ४४५ |
वसिष्ठोऽप्यनुमेने तत् प्रार्थितः सुरसत्तमैः ॥ | .... | ४४७ |
९१ श्रुत्वा कौशिकवृत्तान्तं सर्वे मुमुदिरे तदा । | .... | ४४९ |