पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
२१ | दशरथसान्त्वनम् | .... .... २०४ |
२२ | रामलक्ष्मणयोः प्रस्थानम् | .... .... २०९ |
२३ | कामांश्रमकथा | .... .... २१५ |
२४ | ताटकावनप्रवेशः | .... .... २२० |
२५ | ताटकावृत्तान्तः | .... .... २२७ |
श्लोकसङ्ख्या | २१ | ||
३० | तच्छ्रुत्वा वचनं राज्ञः समन्युः कौशिकोऽभवत् । | .... | २०५ |
ततो वसिष्ठो राजानं सान्त्वयामास तत्त्ववित् ॥ | .... | २०७ | |
२२ | |||
३१ | ततः संप्रेषयामास राजा रामं सलक्ष्मणम् । | .... | २०९ |
विश्वामित्रं महात्मानं तावुभावन्वगच्छताम् ॥ | .... | २११ | |
३२ | उपादिशत्तयोर्विद्यां बलामतिबलां मुनिः । | .... | २१३ |
२३ | |||
तां रात्रिमतिसंहृष्टा ऊषुस्ते सरयूतटे ॥ | .... | २१५ | |
३३ | ततः कामाश्रमं प्रापुः, तत्कथां मुनिरब्रवीत् । | .... | २९७ |
अपूजयन्मुनिश्रेष्ठं तत्रत्या मुनयस्तदा ॥ | .... | २१९ | |
२४ | |||
३४ | ततस्ततार सहितस्ताभ्यां गङ्गां स कौशिकः । | .... | २२१ |
गङ्गाया दक्षिणे तीरे विविशुर्गहनं वनम् ॥ | .... | २२३ | |
३५ | अवसत् ताटका यस्मिन् वने परमदारुणा । | .... | २२५ |
२५ | |||
अब्रवीच्चरितं तस्याः पृष्टो रामेण कौशिकः ॥ | .... | २२७ | |
३६ | एनां राघव ! दुर्वृत्तां जहीति मुनिरादिशत् । | .... | २२९ |