पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
१७ | ऋक्षवानराद्युत्पत्तिः | .... .... १७१ |
१८ | श्रीरामाद्यवतारः | .... .... १७९ |
१९ | विश्वामित्रवाक्यम् | .... .... १९२ |
२० | दशरथसन्तापः | .... .... १९८ |
श्लोकसङ्ख्या | १७ | ||
२२ | ससृजुः स्वसुतान् देवाः चतुर्मुखनियोगतः । | .... | १७३ |
ऋक्षवानरगोपुच्छरूपयुक्तान् बलान्वितान् ॥ | .... | १७५ | |
२३ | जुगोप वाली तान् सर्वान् विष्णुसाहाय्यकारिणः । | .... | १७७ |
१८ | |||
निर्वृत्ते तु क्रतौ, मासे द्वादशे, शुभवासरे ॥ | .... | १७९ | |
२४ | कौसल्या सुषुवे रामं, कैकेयी भरतं ततः । | .... | १८१ |
उभौ लक्ष्मणशत्रुघ्नौ सुमित्रा सुषुवे ततः ॥ | .... | १८३ | |
२५ | अभ्यवर्धन्त ते सर्वे सदा लोकहिते रताः । | .... | १८५ |
ततः कदाचिदागच्छत् विश्वामित्रो महामुनिः ॥ | .... | १८७ | |
२६ | पूजयामास राजा तं विश्वामित्रं महामुनिम् । | .... | १८९ |
पप्रच्छ राजा तं स्वेवं 'ब्रूहि किं करवाणि ते ?' | .... | १९१ | |
१९ | |||
२७ | प्रत्युवाच मुनिस्त्वेवं 'यष्टुमिच्छाम्यहं नृप ! | .... | १९३ |
मारीचप्रमुखान् हन्यात् रामस्तद्विघ्नकारिणः' | .... | १९५ | |
२८ | स तन्निशम्य राजेन्द्रः खिन्नः प्रत्यब्रवीन्मुनिम् । | .... | १९७ |
२० | |||
ऊनषोडशवर्षोऽयं रामो हन्यात् कथं नु तान् ॥ | .... | १९९ | |
२९ | न रामो राक्षसैर्योद्धा ते हि मायाविनो भृशम् । | .... | २०१ |
अतो मे तनयं बालं नैव दास्यापि राघवम् ॥ | .... | २०३ |