पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
१३ | अश्वमेधदीक्षा | .... .... १३५ |
१४ | अश्वमेधः | .... .... १४३ |
१५ | पुत्रीयेष्टिः | .... .... १५६ |
१६ | पायसोत्पत्तिः | .... .... १६५ |
श्लोखसङ्ख्या | १३ | ||
१३ | वसिष्ठः प्रार्थितो राज्ञा सर्वं सज्जं चकार सः । | .... | १३७ |
आनयामास नृपतीन् नानादेशप्रतिष्ठितान् ॥ | .... | १३९ | |
१४ | शुभे नक्षत्रदिवसे राजा दीक्षामुपाविशत् । | .... | १४१ |
१४ | |||
अथ संवत्सरे पूर्णे राज्ञो यज्ञोऽभ्यवर्धत ॥ | .... | १४३ | |
१५ | ऋश्यशृङ्गमुखाश्चकुरश्वमेधं यथाविधि ।॥ | .... | १४५ |
एकविंशतियूपांश्च स्थापयामासुरादरात् ॥ | .... | १४७ | |
१६ | बद्धा यूपेषु पशवस्तत्तदुद्दिश्य दैवतम् । | .... | १४९ |
तेषां वपादीन् जुहुवुः ऋत्विजोऽथ यथाविधि ॥ | .... | १५१ | |
१७ | ऋतुं समाप्य राजा तु सर्वेभ्यो दक्षिणां ददौ । | .... | १५३ |
अथर्श्यशृङ्गं नृपतिः पुत्रेष्टिं कर्तुमब्रवीत् ॥ | .... | १५५ | |
१५ | |||
१८ | सोऽपि प्रारब्धवानिष्टिं पुत्रीयां पुत्रकारणात् । | .... | १५७ |
तत्रागतैः सुरैर्युक्तो ब्रह्मा विष्णुं तदाऽब्रवीत् ॥ | .... | १५९ | |
१९ | विष्णो ! जहि दुरात्मानं रावणं लोककण्टकम् । | .... | १६१ |
१६ | |||
जग्राह भगवान् विष्णुः सुराणां प्रार्थनामिमाम् ॥ | .... | १६३ | |
२० | ततः प्रादुरभूत् कश्चित्पुरुषो यज्ञपावकात् । | .... | १६५ |
स ददौ पायसं दिव्यं राज्ञः सन्ततिवर्धकम् ॥ | .... | १६७ | |
२१ | पायसं प्राशयत् राजा पुत्रीयं सहधर्मिणीः । | .... | १६९ |
तत् प्राश्य राजपत्न्यस्ताः दिव्यान् गर्भान् दधुस्ततः ॥ | .... | १७१ |