पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
८ | दशरथस्याश्वमेधयजनोद्यमः | .... .... १०८ |
९ | ऋश्यशृङ्गोपाख्यानोपक्षेपः | .... .... ११३ |
१० | ऋश्यशृङ्गोपाख्यानम् | .... .... ११८ |
११ | ऋश्यशृङ्गानयनम् | .... .... १२६ |
१२ | अश्वमेधसन्नाहः | .... .... १३२ |
श्लोकसङ्ख्या | ८ | |
६ | अपुत्रस्त्वथ राजाऽसौ अश्वमेधे मतिं दधौ | .... १०९ |
तस्यानुमेनिरे भावं वसिष्ठाद्या महर्षयः ॥ | .... १११ | |
९ | ||
७ | अथाब्रवीत् सुमन्त्रस्तु राजानं रहसि स्थितम् । | .... ११३ |
सनत्कुमारो भगवानेवं कथितवान् पुरा॥ | .... ११५ | |
८ | ऋश्यशृङ्गप्रसादात्ते भविष्यन्ति सुता इति | .... ११७ |
१० | ||
ऋश्यशृङ्गकथां सूतस्त्वब्रवीत् राजचोदितः ॥ | .... ११९ | |
९ | रोमपादाज्ञयाऽऽनीतः ऋश्यशृङ्गो वनात् पुरम् । | .... १२१ |
वञ्चयित्वा तु वेश्याभिः अनावृष्ठिनिवृत्तये॥ | .... १२३ | |
१० | रोमपादो ददौ कन्यां शान्तां तस्मै महर्षये॥ | .... १२५ |
११ | ||
एवं शृत्वा पुरावृत्तं सुमन्त्रोक्तं नराधिपः | .... १२७ | |
११ | तमृश्यशृङ्गमानेतुं प्रतस्थे मन्त्रिभिस्सह । | .... १२९ |
गत्वाऽऽनीय युतस्तेन प्रविवेश पुरं पुनः । | .... १३१ | |
१२ | ||
१२ | ततः प्राप्ते वसन्ते तु राज्ञे यष्टुं मनोऽभवत्॥ | .... १३३ |
ऋश्यशृङ्गप्रभृतयो मुनयोऽप्यनुमेनिरे॥ | .... १३५ |