पुटमेतत् सुपुष्टितम्
२४
सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
४० | वनप्रस्थानम् | .... .... ३८९ |
४१ | पौरव्यसनम् | .... .... ४०० |
४२ | दशरथाक्रन्दः | .... .... ४०५ |
४३ | कौसल्यापरिदेवनम् | .... .... ४२३ |
श्लोकसङ्ख्या | अवान्तरविषयाः | |
४० | ||
कृत्वा प्रदक्षिणं तातं प्रतस्थुस्ते त्रयो वनम् ॥ | ....३८९ | |
९८ | आरुरोह रथं सीता प्रथमं हृष्टमानसा । | ....३९१ |
ततस्तु तं रथं रामोऽप्यारुरोह सलक्ष्मणः ॥ | .... ३९३ | |
९९ | ततस्सबालवृद्धा सा नगरी मूर्छिताऽभवत् । | ....३९५ |
पौराः सर्वेऽनुजग्मुस्ते रामं संप्रस्थितं वनम् ॥ | .... ३९७ | |
१०० | स्मरन् हितं तु रामस्य राजा कृच्छ्रान्नयवर्तत । | .... ३९९ |
४१ | ||
आर्तशब्दो महान् जज्ञे रामे प्रव्रजिते वनम् ॥ | .... ४०१ | |
१०१ | आहारे वा विहारे वा न कश्चिदकरोन्मनः । | .... ४०३ |
४२ | ||
राजा तु पुत्रशोकार्तः पपात भुवि मूर्छितः ॥ | ....४०५ | |
१०२ | तं तु रेणुपरीताङ्गं उत्थाप्यासान्त्वयन् परे । | .... ४०७ |
विलपन् बहुधा राजा प्रविवेश स्वपत्तनम् ॥ | ....४०९ | |
१०३ | रुदन् दशरथो दीनः कौसल्याया गृहं ययौ । | .... ४११ |
४३ | ||
कौसल्या पुत्रशोकार्ता विललाप भृशं तदा ॥ | ....४१३ | |
१०४ | स्मारंस्मारं प्रियं पुत्रं दुःखस्यान्तं ययौ न सा । | .... ४१५ |